गुरु प्रदोष व्रत: शिव शंकर की कृपा से होगी हर कामना सिद्ध

Edited By Jyoti,Updated: 13 Apr, 2022 03:55 PM

pradosh vrat

14 अप्रैल, 2020 दिन गुरुवार इस माह का प्रदोष व्रत पड़ रहा है। आपको बता दें कि चूंकि ये प्रदोष व्रत गुरुवार को पड़

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
14 अप्रैल, 2020 दिन गुरुवार इस माह का प्रदोष व्रत पड़ रहा है। आपको बता दें कि चूंकि ये प्रदोष व्रत गुरुवार को पड़ रहा है, इसलिए इसे गुरु प्रदोष कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार  इस दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।पूजा में पंचामृत का प्रयोग करें, शिव जी को धूप दिखाएं तथा उनके प्रिय भोग लगाएं। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। मान्यता है कि इस दिन यान भगवान शिव त्रयोदशी तिथि में शाम के समय कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं। जो व्यक्ति इनकी इस दिन विधि वत रूप से पूजा करता है शिव शंकर उन पर अति प्रसन्न होते हैं।

अप्रैल 14, 2022, बृहस्पतिवार
गुरु प्रदोष व्रत- 06:46 पी एम से 09:00 पी एम

त्रयोदशी-
02 घण्टे 14 मिनट्स

चैत्र, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ - 04:49 ए एम, अप्रैल 14
समाप्त - 03:55 ए एम, अप्रैल 15

चलिए अब जानते प्रदोष व्रत की कथा-

एक नगर में तीन मित्र रहते थे– राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे, धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकिन गौना बाकी था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे।  ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।’ धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्‍नी को लाने का निश्चय कर लिया। तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं, ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता, लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया। ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो ज़िद पर अड़ा रहा और कन्या के माता पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी। विदाई के बाद पति-पत्‍नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई। दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे। कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकुओं से पड़ा। जो उनका धन लूटकर ले गए। दोनों घर पहुंचें। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी।। और कहा कि इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें। धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया जहां उसकी हालत ठीक होती गई। यानी शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए।

पूजन विधि-
ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर स्नान, ध्यान करने के बाद उगते हुए सूर्य को तांबे के पात्र में जल, रोली और अक्षत लेकर अर्घ्य दें।

अर्घ्य देने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत करने का संकल्प।

पूरे दिन भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप मन ही मन में करते रहें।

संभव हो तो यह व्रत निराहार ही रहना चाहिए।

पूरा दिन बीतने के बाद शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव को पहले पंचामृत से स्नान कराना चाहिए इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर बिल्व पत्र, धतूरे के फल, रोली, अक्षत, धूप और दीप से पूजन करना चाहिए।

भगवान शिव को साबुत चावल की खीर भी अर्पित करना चाहिए, सबसे अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करके प्रसाद को बांटना चाहिए।

यहां जानिए किस प्रदोष व्रत का मिलता है कैसा फल-
रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने वाला हमेशा निरोग रहता है।

सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।

मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से रोगों से छुटकारा मिलता है।

बुधवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सभी तरह की कामना की सिद्धि होती है।

बृहस्पतिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से शत्रु का नाश होता है।

शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सौभाग्य की बढ़ोत्तरी होती है। और

शनिवार को प्रदोष व्रत करने से पुत्र की प्राप्ति होती है।
 

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