Kundli Tv- जानें, कौन करता है श्राद्ध

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Sep, 2018 01:50 PM

pratipada shraddha

पितृ पक्ष का समय आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक रहता है। इस पक्ष में विशेष रूप से पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है।

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पितृ पक्ष का समय आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक रहता है। इस पक्ष में विशेष रूप से पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। गोग्रास देना और ब्राह्मण भोजन कराना श्राद्ध संबंधी अति सामान्य कार्य है। श्राद्ध में कुश, जौ, चावल तथा तिल का प्रयोग किया जाता है। श्राद्ध का अधिकार पुत्र का है। स्कंदपुराण के अनुसार पुत्र के जन्म लेने के साथ ही उस पर तीन ऋण जुड़ जाते हैं- देवऋण, ऋषिऋण और पितर ऋण। पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए पुत्र को अपने घर के बुजुर्गों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए जिससे उनको पुत नामक नरक से मुक्ति प्राप्त हो सके।
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पुत्र के अभाव में पौत्र और उसके अभाव में पड़पौत्र अधिकारी है। पुत्र के अभाव में विधवा स्त्री भी श्राद्ध कर सकती है। इस प्रकार पुत्र न होने पर पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है। यदि पिता के अनेक पुत्र हों तो ज्येष्ठ पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए। यदि अन्य भाई अलग-अलग रहते हों तो वे भी कर सकते हैं। किंतु संयुक्त रूप से एक ही श्राद्ध करना अच्छा है। पुत्र परंपरा के अभाव में भाई तथा उसके पुत्र को भी अधिकार है। यदि कोई विहित अधिकारी न हो तो कन्या का पुत्र या परिवार का कोई भी उत्तराधिकारी कर सकता है।
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जिस दिन अपने पूर्वजों का श्राद्ध करें उस दिन सारा परिवार मिलकर भगवद गीता के सातवें अध्याय का पाठ करे, संभव न हो तो कोई भी एक व्यक्ति करके उसका फल मृतक आत्मा को अर्पित कर दे। ऐसा करने से न केवल पितरों का बल्कि सभी देवों का आशीर्वाद आपके घर-परिवार पर बना रहेगा।
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