ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए, क्या है इसकी पूजन विधि?

Edited By Jyoti,Updated: 02 Jun, 2020 12:36 PM

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हिंदू धर्म में ज्येष्ठ महीने को काफ़ी महत्व प्रदान है। तो वहीं इस पूरे माह में और भी कई विशेष त्यौहार आदि आते हैं जिसकी वजह से इस मास की महत्वता अधिक मानी जाती है।

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हिंदू धर्म में ज्येष्ठ महीने को काफ़ी महत्व प्रदान है। तो वहीं इस पूरे माह में और भी कई विशेष त्यौहार आदि आते हैं जिसकी वजह से इस मास की महत्वता अधिक मानी जाती है। यूं तो हर माह में एक बार पूर्णिमा तिथि पड़ती है। मगर ज्येष्ठ मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि की अपनी अलग विशेषता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन स्नान-ध्यान के साथ-साथ दान-पुण्य के अन्य कार्यों को करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। तो वहीं इस दिन वट सावित्री का व्रत एवं कबीरदास जी की जयंती का पर्व भी मनाया जाता है। तो चलिए जानते हैं पूर्णिमा तिथि का शुभ मुहूर्त तथा इसका धार्मिक महत्व। साथ ही साथ जानेंगे इस दिन पड़ने वाले दो अन्य व्रत और त्यौहार से जुड़ी कथाएं व मान्यताएं। 
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सबसे पहले जानें ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि कब है- 
ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि- 5 जून, शुक्रवार

ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि मुहूर्त-
पूर्णिमा तिथि शुरू - जून 5, 2020 को 03:17:47 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - जून 6, 2020 को 24:44 बजे

ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ऐसे करें पूजा- 
धार्मिक मान्यातओं के अनुसार इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं एवं वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा आराधना करती हैं।

इसके अलावा एक बांस की टोकरी में 7 तरह के अनाज रखकर उन्हें कपड़े के दो टुकड़े से ढ़क दिया जाता है। 

फिर एक और टोकरी में सावित्री की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है। 

फिर वट वृक्ष की जल, अक्षत, कुमकुम से पूजा की जाती हैं। 
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इसके पश्चात एक लाल मौली वृक्ष पर लपेटते हुए 7 बार चक्कर लगाएं और ध्यान करें।

ध्यन रहे पूजन समाप्त करने के बाद महिलाएं सावित्री की कथा ज़रूर सुनें और अपनी क्षमता के अनुसार दान दक्षिणा देते हुए अपने पति की लंबी आयु की कामना करें। 

वट पूर्णिमा व्रत-
बता दें ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि के दिन वट पूर्णिमा व्रत भी रखा जाता है। खासतौर पर यह व्रत महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण के राज्यों में विशेष रूप से रखा जाता है, जबकि उत्तर भारत में यह व्रत वट सावित्री के रूप मे मनाया जाता हैं, जो ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पड़ता है। 

इस दिन को लेकर मत ये है कि इस दिन सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से वापस लेकर आईं थी। जिस कारण विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए इस व्रत को रखती हैं। 
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कबीरदास जयंती-
कथाओं के अनुसार संत कबीर का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए प्रति वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवि थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज की बुराइयों को दूर करने में लगा दिया।

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