राधा अष्टमी: इस कुंड में किया गया स्नान भरता है सूनी गोद

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Sep, 2019 06:59 AM

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राधा रानी के दरबार में अपना आंचल फैलाकर हजारों श्रद्धालु राधाकुंड में डुबकी लगाते हैं। देश-विदेश से भी भक्त मन्नतों के इस दरबार में अपनी फरियाद लेकर पहुंचते हैं। मान्यता है कि अहोई अष्टमी पर

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राधा रानी के दरबार में अपना आंचल फैलाकर हजारों श्रद्धालु राधाकुंड में डुबकी लगाते हैं। देश-विदेश से भी भक्त मन्नतों के इस दरबार में अपनी फरियाद लेकर पहुंचते हैं। मान्यता है कि अहोई अष्टमी पर राधाकुंड में रात 12 बजे सभी देव और तीर्थ वास करते हैं। इन पलों में स्नान करने से दंपति को संतान की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है। गोवर्धन से पांच किलोमीटर दूर स्थित राधाकुंड में राधा धाम की ध्वनि गूंजती रहती है।

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मथुरा नगरी से 26 किलोमीटर दूर राधाकुंड का अलग ही धार्मिक महत्व है। मन में संतान रत्न की आस, ऊपर से राधा जी पर अटूट विश्वास कि इस बार राधाकुंड में स्नान करने से मेरी गोद जरूर भरेगी। इसी आस्था के साथ कार्तिक मास की अष्टमी (अहोई अष्टमी) को राधाकुंड में हजारों दंपति स्नान कर संतान रत्न प्राप्ति की कामना करते हैं।

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मान्यता
मान्यता है कि कार्तिक मास की अष्टमी को वे दंपति जिन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुई है वे निर्जला व्रत रखते हैं और सप्तमी की रात्रि को रात्रि 12 बजे से राधा कुंड में स्नान करते हैं। इसके बाद सुहागिनें अपने केश खोलकर रखती हैं और राधा की भक्ति कर आशीर्वाद प्राप्त कर संतान रत्न प्राप्ति की भागीदार बनती हैं। मान्यता है कि आज भी पुण्य नक्षत्र में राधा जी और श्री कृष्ण रात्रि 12 बजे तक राधाकुंड में अष्ट सखियों संग महारास करते हैं। इसके बाद पुण्य नक्षत्र शुरू होते ही वहां स्नान कर भक्ति करने वालों को दोनों आशीर्वाद देते हैं और पुत्र की प्राप्ति होती है।

पौराणिक मान्यता है कि राधा जी ने उक्त कुंड को अपने कंगन से खोदा था। इसलिए इसे ‘कंगन कुंड’ भी कहा जाता है। कथा है कि श्री कृष्ण गोवर्धन में गौचारण लीला करते थे। इसी दौरान अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप धारण करके श्री कृष्ण पर हमला किया। इस पर श्री कृष्ण ने उसका वध कर दिया। 

तब राधारानी ने श्री कृष्ण को बताया कि उन्होंने अरिष्टासुर का वध तब किया जब वह गौवंश के रूप में था इसलिए उन्हें गौवंश हत्या का पाप लगा है। इस पाप से मुक्ति के उपाय के रूप में श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड (श्याम कुंड) खोदा और उसमें स्नान किया। इस पर राधा जी ने श्याम कुंड के बगल में अपने कंगन से एक और कुंड (राधा कुंड) खोदा और उसमें स्नान किया। स्नान करने के बाद राधा जी और श्री कृष्ण ने महारास रचाया था। महारास में दोनों कई दिन-रात तक लगातार रास रचाते सुधबुध खो बैठे। 

महारास से प्रसन्न होकर राधा जी से श्री कृष्ण ने वरदान मांगने को कहा। इस पर राधा जी ने कहा कि हम अभी गौवंश वध के पाप से मुक्त हुए हैं। वह चाहती हैं कि जो भी इस तिथि में राधा कुंड में स्नान करे उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो।

इस पर श्री कृष्ण ने राधा जी को यह वरदान दे दिया। इसका उल्लेख ब्रह्मपुराण व गर्ग संहिता के गिर्राज खंड में मिलता है। उल्लेख है कि महारास वाले दिन कार्तिक मास की अष्टमी (अहोई अष्टमी) थी।

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अरीध वन था राधाकुंड
मान्यता है कि राधा कुंड नगरी कृष्ण से पूर्व राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन थी। बताया जाता है कि अरिष्टासुर अति बलवान व तेज दहाड़ वाला था। उसकी दहाड़ से आसपास के नगरों में गर्भवती महिलाओं के गर्भ गिर जाते थे। इससे ब्रजवासी खासे परेशान थे। इस कारण श्री कृष्ण ने उसका वध करने को लीला रची थी ताकि यहां पहुंचने वाले भक्तों की आस पूरी हो। 

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