यहां प्रसाद के रूप में मिलती है हरियाली, विदेशों तक जाती है मंदिर के हवन-यज्ञ की भभूत

Edited By Jyoti,Updated: 30 Apr, 2021 03:51 PM

raj rajeshwari temple uttrakhand

आज हम आपको देवभूमी उत्तरांचल के श्रीनगर गढ़वाल से 18 कि.मी की दूरी पर स्थित ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को हरियाली प्रदान की जाती है।

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आज हम आपको देवभूमी उत्तरांचल के श्रीनगर गढ़वाल से 18 कि.मी की दूरी पर स्थित ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को हरियाली प्रदान की जाती है। आपको जानकर शायद थोड़ी हैरानी होगी परंतु मंदिर से जुड़ी तमाम मान्यताओं के आधार पर यहां नवरात्रों के दौरान भक्तोंमें हरियाली प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है। दरअसल जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं उसे श्री राज राजेेश्वरी सिद्धपीठ के नाम से जाना जाता है।  बताया जाता है इस प्राचीन मंदिर में केवल नवरात्रों के दौरान ही नहीं बल्कि वर्षभर लोग पहुंचते रहते हैं। हालांकि वर्तमान समय में इस मंदिर की भीड़ कम हो गई है, और उसका कारण है देश में फैली महामारी कोरोना। जिसके चलते लोग मजबूरन अपने घरों आदि में बंद होकर बैठ गए हैं।

धन, वैभव, योग तथा मोक्ष की देवी श्री राज राजश्वेरी माता का सिद्धपीठ घने जंगलों के बीचो-बीच स्थित है। लोगों द्वारा बताया जाता है कि प्राचीन समय से पूज्य देवी राज राजेश्वरी की उस समय के कई राजाओं-महाराजाओं की कुल देवी रह चुकी हैं। जिस तरह प्राचीन समय में भी इनके अनेकों अनन्य भक्त थे ठीक उसी तरह वर्तमान समय में भी इनकेे भक्तों की गिनती में कोई कमी नहीं है। बल्कि भक्तों की अटूट आस्था का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि न केवल देश में बल्कि विदेशों तक इस मंदिर में होने वाले यज्ञ आदि की भभूत पोस्ट ऑफिस के द्वारा भेजी जाती है। बता दें राज राजेश्वरी देवी को स्वयं माता भगवती का ही रूप कहा गया हैै।

मंदिर की सबसे खास बात
कहा जाता अन्य मंदिरों से यह मंदिर भिन्न इसलिए माना जाता है क्योंकि देवी राज राजेश्वरी मंदिर में निवास नहीं करती। बल्कि यहां मां मंदिर के बजाय पठाल से बने घर में निवास करती हैं। मंदिर की मूर्ति और यंत्र भवन में रखे गए हैं। रोजाना यहां परंपरा के अनुसार विशेष पूजा, पाठ, हवन किया जाता है।

इसके अलावा इससे जुड़ी एक खास बात ये भी है कि हर साल प्रथन नवात्र के दौरान यहां किन्हीं यंत्रों की पूजा-अर्चना की जाती है। नौ दिन तर इनका पूजन कर, आखिर नवरात्रि के दिन भक्तों में हरियाली बांटी जाती है। बता दें सन 1512 में यहां श्री महिषमर्दिनी यंत्र और कामेश्वरी यंत्र को भी स्थापित किया गया था।

सिद्धपीठ के पुजारियों का कहना है कि 10 सितंबर 1981 से पीठ में अखंड ज्योति की परंपरा शुरु हुई। तथा बीते कई सालों से हर दिन हवन की परपंरा आज भी जारी है। कहा ये भी जाता है कि उत्तराखंड में जागृत श्रीयंत्र भी यहीं स्थापित है।

विदेशों में भी इससे जुड़ी अटूट आस्था
इस सिद्धपीठ में होने वाले हवन-यज्ञ आदि की भभूत पोस्ट ऑफिस के जरिए विदेशों में भेजी जाती है। जिसमें सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, लंदन, अमेरिका का नाम शामिल है। इससे ये साफ होता है कि मंदिर देश के साथ-साथ विदेश में रह रहे लोगों की आस्था का प्रतीक है। 

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