Raksha Bandhan: राखी बांधते समय बोले ये मंत्र, 1 वर्ष तक रहेगा ऊर्जा का प्रभाव

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Aug, 2020 08:20 AM

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भारतवर्ष संस्कृति और संस्कारों का देश है। भारत की संस्कृति अनेक त्यौहार एवं उत्सवों से सुसज्जित है। इस देश के संस्कारों में रिश्तों को गरिमा और मर्यादा के साथ निभाया जाता है। रक्षाबंधन भी एक ऐसा ही त्यौहार है।

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Raksha Bandhan 2020: भारतवर्ष संस्कृति और संस्कारों का देश है। भारत की संस्कृति अनेक त्यौहार एवं उत्सवों से सुसज्जित है। इस देश के संस्कारों में रिश्तों को गरिमा और मर्यादा के साथ निभाया जाता है। रक्षाबंधन भी एक ऐसा ही त्यौहार है। वर्ष 1991 के बाद यह पहला मौका है जब रक्षाबंधन पर विशेष संयोग बन रहा है। पूर्णिमा तिथि पर सूर्य, शनि के सप्तक योग, प्रीति योग, आयुष्मान योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, सोमवती पूर्णिमा, मकर राशि का चंद्रमा, श्रवण नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में सावन माह के आखिरी सोमवार के दिन रक्षाबंधन मनाया जाएगा और 4 अगस्त से भाद्र मास शुरू हो जाएगा। 

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3 अगस्त को चंद्रमा के श्रावण नक्षत्र का विशिष्ट योग अति कल्याणकारी है। रक्षाबंधन में राखी या रक्षा सूत्र का सर्वाधिक महत्व है। राखी सामान्यत: बहनें  भाई को ही बांधती हैं परंतु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी कन्याओं द्वारा सम्मानित संबंधियों जैसे पुत्री द्वारा पिता को भी राखी बांधी जाती है। कुछ सामाजिक संस्थाएं प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी चला रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिए एक-दूसरे को भगवा रंग की राखी बांधते हैं। 

हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षा सूत्र बांधते समय कर्मकांडी पंडित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं जिसमें रक्षाबंधन का संबंध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। रक्षाबंधन पर बहनें जब भाइयों की कलाई पर राखी बांधें तो रक्षा सूत्र का पाठ जरूर करें जिसका वर्णन महाभारत में भी आता है। यह है रक्षा सूत्र :
ओईम येन बद्धो बली राजा दानवेंद्रो महाबल:। तेन त्वामपि  बध्नामि  रक्षे मा चल मा चल।।

मान्यता के अनुसार राखी बांधते वक्त इस मंत्र को बोलने से 1 वर्ष तक भाई-बहन के प्रेम पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव रहता है।

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राखी का त्यौहार कब शुरू हुआ, इसके बारे में तो निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों के युद्ध में जब दानव हावी होने लगे तो इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था। इन्द्र इस युद्ध में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे।

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स्कंद पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद् भागवत में ‘वामनावतार’ नामक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कथा के अनुसार दानवेंद्र राजा बलि ने सौ यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इंद्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की  तो भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेश धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। राजा बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा राजा बलि के अभिमान को चकनाचूर कर दिया गया।

विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्म के लिए फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। रक्षाबंधन का पर्व वैदिक विधि से मनाना श्रेष्ठ माना गया है। इस विधि से मनाने पर भाई का जीवन सुखमय बनता है और जीवन में शुभ शक्तियों का संचार होता है। परंपराओं के अनुसार श्रावण मास के अंतिम सोमवार को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है।

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राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
चौघड़िया- सुबह 9:30 बजे से लेकर 11 बजे तक। 
अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12:18 से लेकर 1:10 बजे तक। 
लाभ अमृत का चौघड़िया- दोपहर 4:02 से लेकर 7:20 बजे तक।

 

 

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