कहीं नारियल पूर्णिमा तो कहीं कजरी पूनम के रूप में मनाया जाता है रक्षा बंधन

Edited By Jyoti,Updated: 06 Aug, 2019 09:46 AM

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हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण त्यौहार रक्षा बंधन मनाया जाता है। इसमें बहनें अपनी भाई की तरक्की की तथा उनकी लंबी उम्र की कामना करते हुए कलाई में रक्षा सूत्र बांधती हैं।

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हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण त्यौहार रक्षा बंधन मनाया जाता है। इसमें बहनें अपनी भाई की तरक्की की तथा उनकी लंबी उम्र की कामना करते हुए कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं। बता दें इस बार रक्षा बंधन का ये त्यौहार 15 अगस्त यानि स्वतंत्रता दिवस के दिन पड़ रहा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में ये त्यौहार मनाया तो जाता है लेकिन हर जगह इसे विभिन्न प्रकार के नाम से जाना जाता है और इसे मनाने की पंरपराएं भी अलग हैं। तो चलिए जानते हैं इसे मनाने की विभिन्न लोक मान्यताएं व परंपराएं।

सबसे पहले बता दें हिंदू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक माने जाने वाले इस पर्व का संबंध रक्षा से है। जब कोई आपकी किसी प्रकार की रक्षा करता है तो उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए हम उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र की अद्भुत शक्ति को बताते हुए युधिष्ठिर से कहा था कि जाओ अपनी सेना के साथ रक्षा बंधन का त्यौहार मनाओ, इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी।
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यहां जानें भारत के अन्य राज्य में किस नाम से मनाया जाता है रक्षा बंधन-
बताया जाता है उत्तरी भारत में रक्षाबंधन को श्रावण पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि श्रावण पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है। उत्तर भारत में तो इसे रक्षा बंधन के रूप में ही मनाया जाता है। सावन में मनाए जाने के कारण इसे श्रावणी व सलूनो भी कहते हैं। इस अवसर पर बहनें अपना सम्पूर्ण प्यार रक्षा सूत्र के रूप में भाई की कलाई पर बांध कर उड़ेल देती हैं।  

उत्तरांचल में रक्षाबंधन को श्रावणी के रूप में धूम-धाम से मनाया जाता है। यहां को लोक मान्यता के अनुसार यहां इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपनयन कर्म होता है तथा उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके उनको नवीन यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। वृत्तिवान् ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत व राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमरनाथ यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारंभ होकर रक्षाबंधन के दिन को ही पूर्ण होती है। कहते हैं इसी दिन यहां बर्फ के शिवलिंग भी अपना पूर्ण आकार प्राप्त करते हैं। हालांकि इस बार अमरनाथ यात्रा समय से पहले ही बंद कर दी है।
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नारियल पूर्णिमा
महाराष्ट्र में राखी का त्यौहार नारियल पूर्णिमा व श्रावणी के नाम से मनाया जाता है। इस विशेष दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। इसके अलावा यहा की लोक मान्यताओं के अनुसार इस दिन यहां जल के देवता वरुण को प्रसन्न करने के लिए नारियल अर्पित किया जाता है। कहा जाता है पूजा के चलते मुंबई के समुद्र तट नारियल से भरे मिलते हैं।

इसके अलावा दक्षिण भारत के तमिलनाडु और केरल के साथ ही देश के कई विभिन्न भागों में भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। इस दिन ये यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मण नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण करते हैं और फिर नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। बता दें इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 महीनों का वेद अध्ययन भी शुरू करते हैं। इसलिए इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका अर्थ ही होता है नई शुरुआत।
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गीली राखी
राजस्थान में इस दिन रामराखी व चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से थोड़ी अलग होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है। बता दें यह राखी भगवान को बांधी जाती है। वहीं चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बांधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी में गोबर, मिट्टी और भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है, फिर धर्म और वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा, गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट अर्थात पूजास्थल बनाकर उनकी मंत्रोच्चार के साथ पूजा की जाती है। इसके बाद उनका तर्पण कर दिया जाता है ताकि पितृॠण चुकाया जा सके। फिर घर पर हवन किया जाता है और वहीं पर रेशम के डोरे से राखी बनाई जाती है तथा उसको कच्चे दूध से अभिमंत्रित किया जाता है। भगवान को राखी अर्पित करने के बाद ही भोजन किया जाता है।
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