Raksha Panchami: अपने वंश की रक्षा के लिए घर की दक्षिण पश्चिम दिशा में करें विशेष प्रयोग

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Aug, 2020 09:22 AM

raksha panchami

शास्त्रों के अनुसार रक्षा पंचमी का पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को मनाए जाने का विधान है। पूर्वकाल में यह पर्व सभी वर्णों के पुरुषों और महिलाओं के लिए प्रतिपादित था। शास्त्रों में रक्षा पंचमी

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Raksha Panchami 2020: शास्त्रों के अनुसार रक्षा पंचमी का पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को मनाए जाने का विधान है। पूर्वकाल में यह पर्व सभी वर्णों के पुरुषों और महिलाओं के लिए प्रतिपादित था। शास्त्रों में रक्षा पंचमी को रेखा पंचमी और शांति पंचमी कहकर भी संबोधित किया जाता है। ऐसी मान्यता है की जो व्यक्ति रक्षाबंधन के पर्व पर रक्षासूत्र बंधवाने में असमर्थ रहे थे वो व्यक्ति रक्षा पंचमी के पर्व पर रक्षासूत्र बंधवाकर इस पर्व को मनाते हैं। धार्मिक मतानुसार रक्षा पंचमी पर श्री गणपति जी का विधिवत पूजन किया जाता है। शास्त्रों में रक्षा पंचमी पर वक्रतुण्ड रुपी हरिद्रा गणेश के पूजन का दूर्वा और सरसों से करने का विधान है।

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शास्त्रों के अनुसार रक्षा पंचमी के दिन भगवान शंकर के पंचम रुद्रावतार भैरवनाथ की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। नाथ सम्प्रदाय के लोग इस दिन भैरव के सर्पनाथ स्वरुप के विग्रह का पूजन करते हैं। 

शास्त्र पद्धति गदाधर के अनुसार इस दिन घर की दक्षिण पश्चिम दिशा में कोयले अथवा काले चूर्णों से काले रंगों से सर्पों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करने का विधान है। सर्प पूजन करने से सर्प प्रसन्न होते हैं और वंशजों को कोई डर नहीं सताता। इस दिन घर के पिछवाड़े में भगवान शंकर के वाहन नंदी का चित्र बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा गंध आदि से इन्द्राणी की पूजा भी करनी चाहिए।

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भगवान कृष्ण ने भागवत में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’

अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षासूत्र भी लोगों को जोड़ता है।

गीता में ही लिखा गया है कि जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है, तब ज्योतिर्लिंगम शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा पृथ्वी पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें मंगलकामना करते हुए लोग एक-दूसरे को बांधते हैं तथा परमेश्वर शिव उन लोगों को नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दु:ख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।

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उपाय और पूजन विधि: इस दिन प्रातः काल दैनिक कृत से निवृत होकर विधिवत हरिद्रा गणेश, सर्पनाथ भैरव और शिव के ताड़केश्वर स्वरुप का विधिवत पूजन करें। धूप दीप पुष्प गंध और नववैध अर्पित करें। गणेश जी पर दूर्वा, सिंदूर लड्डू चढ़ाएं। भैरव जी पर उड़द गुड़ और सिंदूर अर्पित करें। तत्पश्चात ताड़ के पत्ते पर "त्रीं ताडकेश्वर नमः" लिखकर घर के उत्तर दिशा के द्वार पर टांग दें। ताड़ के पत्ते के साथ-साथ एक पीले रंग की पोटली में दूर्वा, अक्षत, पीली सरसों, कुशा और हल्दी बांधकर टांग दें। पूजन में गणेश भैरव और शिव के चित्रों पर रक्षासूत्र स्पर्श करवाकर घर के सभी सदस्यों को बांधें। इसके बाद बाएं हाथ में काले नमक की डली अथवा उड़द लेकर हकीक अथवा गोमेदक की माला से इस मंत्र का यथासंभव जाप करें।

मंत्र: कुरुल्ले हुं फट्स्वाहा।।

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जाप पूरा होने के बाद रात्रि के समय नाग, बैताल ब्रह्मराक्षस और दश दिगपाल आदि का खीर से पूजन कर रात्रि के समय उनके लिए घर की दक्षिण पश्चिम दिशा में खीर का भोग रखें। बाएं हाथ में ली हुई काले नमक की डली अथवा उड़द पीले कपड़े में बांधकर घर की दक्षिण पश्चिम दिशा में छुपाकर रख दें। इस पूजन और उपाय से सारे परिवार के प्राणों की रक्षा होती है। इस पूजन से सर्प और देव, गन्धर्व प्रसन्न होते हैं और वंशजों की रक्षा होती है तथा परमेश्वर शिव प्रसन्न होकर नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दु:ख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।

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