रामलीला का आकर्षण आज भी बरकरार, लुभा रहे Special Effects

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Oct, 2019 08:42 AM

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दशहरे से काफी समय पहले ही देशभर में प्रति वर्ष रामलीलाओं के आयोजन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद के 90-100 फुट के ऊंचे पुतले तैयार होने लगते हैं। श्रीराम के आदर्श,

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दशहरे से काफी समय पहले ही देशभर में प्रति वर्ष रामलीलाओं के आयोजन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद के 90-100 फुट के ऊंचे पुतले तैयार होने लगते हैं। श्रीराम के आदर्श, अनुकरणीय एवं आज्ञा पालक चरित्र तथा सीता, लक्ष्मण, भरत, हनुमान, जटायु, विभीषण, शबरी इत्यादि रामलीला के विभिन्न पात्रों द्वारा जिस प्रकार अपार निष्ठा, भक्ति, प्रेम, त्याग एवं समर्पण के भावों को रामलीला के दौरान प्रकट किया जाता है, वह अपने आप में अनुपम है और नई पीढ़ी को धर्म एवं आदर्शों की प्रेरणा देने के साथ-साथ उसमें जागरूकता का संचार करने के लिए भी पर्याप्त है। ये आयोजन कला को भी एक नया आयाम प्रदान करते हैं। रामलीलाओं की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इनके मंचन में हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोगों का भी विशेष सहयोग मिलता है और रामलीला देखने भी सभी धर्मों के लोग आते हैं। रामलीलाओं में हमें भक्ति, श्रद्धा, आस्था, निष्ठा, कला, संस्कृति एवं अभिनय का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता है।

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रामलीलाओं के आयोजन की शुरूआत कब हुई थी, दावे के साथ यह कह पाना तो मुश्किल है क्योंकि इस बारे में अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं किन्तु रामलीलाओं के आयोजन का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है- कथा मंचन के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाना। इस उद्देश्य में रामलीलाएं काफी हद तक सफल हैं। भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाई जाती रामलीलाओं ने भारतीय संस्कृति एवं कला को जीवित बनाए रखने में बहुत अहम भूमिका निभाई है। 

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सही मायनों में रामलीलाएं भारतीय धर्म एवं संस्कृति की ध्वजवाहक हैं। जैसे-जैसे भारतीय संस्कृति पर आधुनिकता का रंग चढऩे लगा, रामलीलाएं भी आधुनिकता की चकाचौंध से दूर नहीं हैं। रामलीला के नाम पर जिस तरह के आयोजन आजकल होने लगे हैं, उन्हें देखकर लगता है कि आधुनिकता की चपेट में आई इस प्राचीन परम्परा का मूल स्वरूप और धार्मिक अर्थ अब धीरे-धीरे गौण हो रहे हैं। एक-एक रामलीला के आयोजन में पंडाल और मंच की साज-सज्जा पर ही अब लाखों-करोड़ों रुपए खर्च होने लगे हैं। पंडालों की आकृतियां लाल किला, इंडिया गेट, ताजमहल जैसी भव्य ऐतिहासिक इमारतों के रूप में बनाई जाने लगी हैं। आधुनिक सूचना तकनीक ने रामलीलाओं में गहरी पैठ बना ली है। संवाद बोलने के लिए मंच पर लंबे-चौड़े माइकों की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि कलाकारों के गले में छोटे-छोटे माइक्रोफोन लटके रहते हैं। इतना ही नहीं, कुछ रामलीला कमेटियां तो पंडालों में लंबी-चौड़ी वीडियो स्क्रीन लगाकर स्पैशल इफैक्ट्स दिखाने का बंदोबस्त भी करने लगी हैं। पंडालों के भीतर हर तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ  उठाने के इंतजाम भी किए जाते हैं।

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