Ram Navami 2021- प्रेम का एक अनोखा आदर्श थे ‘राजा दशरथ’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Apr, 2021 12:26 PM

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अयोध्या नरेश महाराज दशरथ स्वयम्भुव मनु के अवतार थे। पूर्व काल में कठोर तपस्या करके इन्होंने भगवान श्री राम को पुत्र रूप में प्राप्त करने का वरदान पाया था। ये परम तपस्वी, वेदों के ज्ञाता, विशाल सेना के स्वामी, प्रजा का संतान के समान पालन करने वाले...

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Ram Navami 2021- अयोध्या नरेश महाराज दशरथ स्वयम्भुव मनु के अवतार थे। पूर्व काल में कठोर तपस्या करके इन्होंने भगवान श्री राम को पुत्र रूप में प्राप्त करने का वरदान पाया था। ये परम तपस्वी, वेदों के ज्ञाता, विशाल सेना के स्वामी, प्रजा का संतान के समान पालन करने वाले तथा सत्यनिष्ठ थे। इनके राज्य में प्रजा धर्मरत तथा धन-धान्य से सम्पन्न थी। देवता भी इनकी सहायता प्राप्त करने के अभिलाषी रहते थे। देवासुर-संग्राम में इन्होंने दैत्यों को हराया और अपने जीवन में अनेक यज्ञ भी किए।

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महाराज की वृद्धावस्था आ जाने पर भी जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो इन्होंने अपनी यह समस्या गुरुदेव वशिष्ठ को बताई। गुरु की आज्ञा से ऋष्यशृंग बुलाए गए और उनके आचार्यत्व में पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन हुआ। यज्ञ पुरुष ने स्वयं प्रकट होकर पायसान्न से भरा पात्र महाराज दशरथ को देते हुए कहा, ‘‘यह खीर अत्यंत श्रेष्ठ, आरोग्यवर्धक तथा पुत्रों को उत्पन्न करने वाली है। इसे तुम अपनी रानियों को खिला दो।’’ 

महाराज ने वह खीर कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा में बांट दी। समय आने पर कौशल्या के गर्भ से भगवान श्री राम का अवतार हुआ। कैकेयी ने भरत तथा सुमित्रा ने लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न को जन्म दिया।

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चारों भाई माता-पिता के लाड़-प्यार में बड़े हुए। यद्यपि महाराज को चारों ही पुत्र प्रिय थे परन्तु श्री राम पर इनका विशेष स्नेह था। वह श्री राम को क्षण भर के लिए भी आंखों से ओझल नहीं करना चाहते थे। 

जब विश्वामित्र जी यज्ञ रक्षा के लिए श्री राम और लक्ष्मण को मांगने आए तो बड़ी कठिनाई से महाराज दशरथ उन्हें विश्वामित्र जी के साथ भेजने को तैयार हुए। अपनी वृद्धावस्था को देख कर महाराज दशरथ ने श्री राम को युवराज बनाना चाहा, परंतु तभी महाराज की सर्वाधिक प्रिय रानी कैकेयी ने अपने पुराने दो वरदान उनसे मांग लिए- एक में भरत को राज्य और दूसरे में श्री राम के लिए चौदह वर्षों का वनवास। 

कैकेयी की यह मांग सुनकर महाराज दशरथ स्तब्ध रह गए। थोड़ी देर के लिए तो उनकी चेतना ही लुप्त हो गई। होश आने पर इन्होंने कैकेयी को नम्रतापूर्वक समझाया, ‘‘भरत को तो मैं अभी राज्य दे देता हूं परन्तु तुम श्री राम को वन भेजने का आग्रह मत करो।’’  

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महाराज के अनुरोध का कैकेयी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। पिता के वचन की रक्षा और आज्ञापालन के लिए अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ श्री राम वन चले गए। महाराज दशरथ के शोक का ठिकाना न रहा। जब तक श्री राम रहे तभी तक इन्होंने अपने प्राणों को रखा और उनका वियोग होते ही अपने प्राणों की आहूति दे डाली।

महाराज दशरथ के जीवन के साथ उनकी मृत्यु भी सुधर गई। श्री राम के वियोग में अपने प्राणों को देकर इन्होंने प्रेम का एक अनोखा आदर्श स्थापित किया और अपने अंत समय में राम-राम पुकारते हुए अपने प्राणों का विसर्जन किया।

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