Rama Ekadashi 2020:  देवी लक्ष्मी से जुड़ी है इस व्रत की पौराणिक कथा

Edited By Jyoti,Updated: 10 Nov, 2020 11:53 AM

rama ekadashi 2020

यूं को साल के लगभग हर महीने में सनातन धर्म के त्यौहार आदि मनाए जाते हैं। परंतु बात अगर कार्तिक मास की करें तो इसमें हिंदू धर्म से जुड़े कई प्रमुख त्यौहार मनाए जाते हैं। इसी सूची में धनतेरस,छोटी दिवाली, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज व अन्य कई पर्व...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
यूं को साल के लगभग हर महीने में सनातन धर्म के त्यौहार आदि मनाए जाते हैं। परंतु बात अगर कार्तिक मास की करें तो इसमें हिंदू धर्म से जुड़े कई प्रमुख त्यौहार मनाए जाते हैं। इसी सूची में धनतेरस,छोटी दिवाली, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज व अन्य कई पर्व शामिल हैं। कहा जाता है कार्तिक का महीना भगवान विष्णु को अधिक प्रिय है, जिसका सीधा सीधा मतलब ये हुआ कि इस मास में आने वाली प्रत्येक एकादशी भी खास होगी। 11 नवंबर, कार्तिकक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रमा एकादशी का व्रत पड़ रहा है। जिसे समस्त 24 एकादशियों में से विशेष माना जाता है। सनातन धर्म के प्रचलित पद्म पुराम के मुताबिक कार्तिक मास में आने वाली इस एकादशी पर पूजा-अर्चना करने से भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी की कृपा होती है। परंत इस एकादशी को रमा एकादशी के नाम से क्यों जाना जाता है, शास्त्रों में इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है आदि के बारे में लोग अवगत नहीं है। तो आपको बता दें आज हम आपको इसी के बारे में जानकारी देने वाले हैं।
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कैसे पड़ा कार्तिक मास की इस एकादशी का नाम रमा?
कार्तिक मास की अमावस्या तिथि के दिन यानि दिवाली के दिन मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। शास्त्रों में देवी लक्ष्मी का एक नाम रमा भी बताया जाता है, इससे प्रचलित किंवदंतियों की मानें कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इसीलिए रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी के लेकर मान्यता है कि इस व्रत को रखने से जातक के सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं, साथ ही साथ आर्थिक परेशानियों से भी राहत मिलती है।
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रमा एकादशी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में मुचुकंद नाम के एक प्रतापी राजा रहते थे, जिनकी चंद्रभागा नामक एक पुत्र थी। जब राजा की पुत्री बड़ी हो गई तो राजा ने उसका विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया। कथाओं में किए वर्णन के अनुसार शोभन एक समय बिना खाए नहीं रह सकता था। एक बार की बात है, कार्तिक मास के महीने में शोभन अपनी पत्नी के साथ उसके यहां यानि ससुराल आया। जिस दौरान रमा एकादशी का व्रत पड़ गया।

चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी रमा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखते थे। जिसके चलते चंद्रभागा के पति शोभन को भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया। मगर शोभन इस बात को लेकर परेशान हो गया कि वह तो एक पल भी भूखा नहीं रह सकता है तो वह रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा। अपनी इस परेशानी को लेकर वह अपनी पत्नी चंद्रभागा के पास गया और उपाय बताने के लिए कहा। तब चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको इस राज्य से बाहर जाना पड़ेगा। क्योंकि हमारे राज्य में तो ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस व्रत नियम का पालन न करता हो। यहां तक कि रमा एकादशी व्रत के दिन हमारे राज्य के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते।

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ये सुनकर शोभन को रमा एकादशी उपवास रखना पड़ा, किंतु व्रत का पारण करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई। शोभन की पत्नी चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी। उधर रमा एकादशी का व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ। एक बार की बात है कि मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे। सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही, उन्होंने उसे पहचान लिया। ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ। तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई। जिसे सुनकर चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो गई। इसके उपरांत वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची, फिर मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची। एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिए स्थिर कर दिया। ऐसा कहा जाता है इसके बाद से ही ये व्रत की परंपरा आरंभ हुई। कहा जाता है जो व्यक्ति ये व्रत को रखता उसे ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्ति मिलती है।

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