Rama Navami 2020: भगवान राम के जन्मोत्सव पर जानें कुछ खास

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Apr, 2020 09:30 AM

rama navami 2020

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चंद्र जी का जन्म महोत्सव, श्री राम अवतार जयंती, श्री राम नवमी व्रत, श्री दुर्गा नवमी, महानवमी, चैत्र (वसंत) नवरात्रे समाप्त, श्री राम जन्म भूमि अयोध्या परिक्रमा, दर्शन पूजन, स्वामी नारायण जी की जयंती, मेला माता श्री...

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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चंद्र जी का जन्म महोत्सव, श्री राम अवतार जयंती, श्री राम नवमी व्रत, श्री दुर्गा नवमी, महानवमी, चैत्र (वसंत) नवरात्रे समाप्त, श्री राम जन्म भूमि अयोध्या परिक्रमा, दर्शन पूजन, स्वामी नारायण जी की जयंती, मेला माता श्री मनसा देवी जी (चंडीगढ़ पंचकूला) एवं हरिद्वार, मेला रामबन (जम्मू-कश्मीर), दश महाविद्या श्री महातारा जी की जयंती, आचार्य भिक्षु जी का अभिनिष्क्रमण दिवस (जैन)

चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को वेदांतवैद्य, पुराण-पुरषोत्तम, जानकीवल्लभ, दीनों पर दया करने वाले, कौशल्या जी का हित करने वाले प्रभु श्रीराम प्रकट हुए। वेद और पुराण जिनको माया, गुण और ज्ञान से परे और परिमाण रहित बतलाते हैं, अपने भक्तों के प्रेमवश वशीभूत हो लक्ष्मीपति भगवान अपने भक्तों के कल्याण के लिए प्रकृति को अपने अधीन कर अयोध्या के राजा दशरथ के आंगन में उनके पुत्र के रूप में पधारे। सर्वव्यापक, निरंजन अर्थात माया से परे, निर्गुण, अजन्मा, साक्षात परब्रह्म, प्रेम और भक्ति के वश मां कौशल्या जी की गोद में खेले।

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।

भगवान श्री रघुनाथ जी का पावन चरित्र शत कोटि विस्तार वाला है। नीलकमल के समान श्यामवर्ण तथा कमलनयन, हाथों में धनुष-बाण धारण करने वाले राक्षसों के संहारकारी भगवान श्रीराम संसार की रक्षा के लिए अपनी लीला से ही अवतीर्ण हुए हैं। तुलसीदास जी रामचरितमानस में अनादि परब्रह्म रघुनाथ जी की स्तुति करते हैं :
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाण शान्तिप्रदं
ब्रह्मा शम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदांतवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।

शांत, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परम शांति प्रदान करने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेष जी से निरंतर सेवित, वेदांत के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि, राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूं।

असुरराज रावण के अत्याचारों से त्रस्त समस्त देवतागण पृथ्वी तथा ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के मार्गदर्शन में वैकुंठाधिपति श्री हरि भगवान से पृथ्वी पर अपने भक्तों के कष्टों को हरने के लिए प्रार्थना की।
जय जय  सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवन्ता।
गौ द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रियकंता।।

हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देने वाले, शरणागत की रक्षा करने वाले भगवान आपकी जय हो। हे गौ-ब्राह्मणों का हित करने वाले, असुरों का विनाश करने वाले ह्यह्यस्वामी आपकी जय हो। देवताओं द्वारा की गई स्तुति से संतुष्ट तथा प्रसन्न हो श्री भगवान ने देवताओं को सूर्यवंश में मनुष्य रूप में अवतार धारण करने का वचन दिया। भगवान के श्री वचनों से देवता निर्भय हो गए।

अपने भक्तों का सदा प्रिय करने वाले भगवान राम ने ताड़का, खर-दूषण तथा रावण जैसे आततायियों का वध कर सम्पूर्ण मानव जाति को निर्भय किया तथा समाज में शांति तथा दयारूपी मानवीय धर्म की स्थापना की। अपने वनवास काल की अवधि में उन्होंने अपनी भक्ति में रमे हुए भक्तों को दर्शन देकर कृतार्थ किया और उनकी भक्ति पूर्ण की। महामुनि अत्रि, महर्षि अगस्त्य, सुतीक्ष्ण मुनि, सती-अनुसूया तथा अपनी परम भक्त शबरी को दर्शन देकर उन्हें कैवल्य प्रदान किया।

जब ऋषि विश्वामित्र यज्ञ-रक्षा के लिए रघुनाथ जी को वन में ले गए थे, तब गौतम ऋषि की पत्नी जो शापवश शिला बन गई थी, वह अहिल्या श्रीराम जी के पवित्र और शोक का नाश करने वाले चरणों का स्पर्श पाते ही तपोमूर्ति स्त्री रूप में प्रकट हो गईं। वन में ऋषियों-मुनियों ने पुराण पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की स्तुति करते हुए उनकी महिमा का गुणगान किया।
नमामि भक्त वत्सलं कृपालुशील कोमलम्।
भजामि ते पदांबुजं अकामिनां स्वधामदं।।

ऋषि बोले- हे भक्त वत्सल! हे कृपालु! हे कोमल स्वभाव वाले! मैं आपको नमस्कार करता हूं। निष्काम पुरुषों को अपना परमधाम देने वाले आपके चरण कमलों को मैं भजता हूं। श्रीहरि जी की श्री राम रूप में की गई अद्भुत लीला सम्पूर्ण मानव समाज के लिए भक्ति एवं प्रेरणा का अनुपम संगम है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी ने समाज के हर वर्ग में स्वयं जाकर प्रेम एवं सौहार्द की परम्परा को स्थापित किया। चाहे वह केवट के रूप में हो अथवा शबरी के रूप में। ऋषियों-मुनियों के बीच आश्रम में रहे। भगवती सीता जी के हरण पश्चात, सुग्रीव तथा जामवंत इत्यादि से सहयोग प्राप्त किया, जहां उन्हें परम भक्त हनुमान जी की सेवा की प्राप्ति हुई। जहां बाली का वध कर राज्य सुग्रीव को दिया, वहीं रावण का वध कर राज्य विभीषण को दिया और उन्हें धर्मपूर्वक राज्य पालन करने का उपदेश दिया, जिससे सभी प्रजाजन सुखी हों।

जब प्रभु श्रीराम ने अयोध्यानाथ के रूप में पद्भार ग्रहण किया, तो राम राज्य की स्थापना हुई।
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम-राज नहिं काहुहि व्यापा।।

राम-राज्य में किसी को भी दैहिक, दैविक एवं भौतिक ताप अथवा कष्ट नहीं होता था। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते थे तथा वेद-मर्यादा में तत्पर रह कर अपने कर्तव्यों का पालन करते थे, किसी की भी छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती थी, न ही किसी को कोई पीड़ा थी। वनों में सदा वृक्ष फलते-फूलते थे। समस्त पशु-पक्षी अपने स्वाभाविक वैर भुलाकर प्रेमपूर्वक रहते थे। धरती सदैव अन्न से परिपूर्ण रहती थी।

वसिष्ठ मुनि जी ने ब्रह्मा जी के आग्रह पर रघुकुल में कुलगुरु की पदवी स्वीकार की, जब उन्हें ब्रह्मा जी ने बताया कि तुम्हें आगे चल कर बहुत लाभ होगा। स्वयं ब्रह्म परमात्मा मनुष्य रूप धारण कर रघुकुल के भूषण राजा होंगे। रघुनाथ जी का उदार नाम अत्यंत पवित्र है तथा समस्त वेद-पुराणों का सार है, कल्याण का भवन और अमंगलों को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित भगवान शिवजी सदा जपा करते हैं।    

 

 

 

 

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