Edited By Jyoti,Updated: 28 May, 2019 01:46 PM
जैसे कि सभी जानते हैं रमज़ान का महीना चल रहा है। बताया जाता है मुस्लिम समुदाय में इस महीने को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है, जिस कारण इसे पाक महीना भी कहा जा
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जैसे कि सभी जानते हैं रमज़ान का महीना चल रहा है। बताया जाता है मुस्लिम समुदाय में इस महीने को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है, जिस कारण इसे पाक महीना भी कहा जाता है। जिसके चलते इस महीने में अल्लाह की इबादत करना बेहद अच्छा होता है। बता दें कि मुस्लिम धर्म के लोग इस पूरे महीने में रोज़े रखते हैं और दिल से अल्लाह की इबादत करते हैं। मान्यता है इस महीने में की गई इबादत कभी व्यर्थ नहीं जाती। आप में से बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें ये बातें पता होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं दान देना किसी इबादत से कम नहीं जाना जाता। जी हां, मुस्लिम धर्म की मान्यताओं के अनुसार रमज़ान के पाक महीने में ज़कात देना यानि दान देना सबसे बड़ी इबादत कहलाती है।
कहा जाता है कि रमज़ान का यह पाक महीना गरीबों का हक अदा करने का महीना होता है। इस महीने में गरीबों को खेरात, ज़कात और सदका दिया जाता है। बताया जाता है जो भी मोमिन माल-ए-हैसियत होता है वह अपने माल की ज़कात मुख्य तौर से इसी महीने में गरीबों को देता है। मान्यता है कि रमज़ान के इस पाक महीने में नेकी करने से 70 गुना सवाब यानि पुण्य मिलता है। कहते हैं ये महीना अमीर और गरीब के बीच के सब फासलों को खत्म कर उनमें एकता पैदा करता है और उन्हें एक समान बनाता है।
रमज़ान के बारे में ये भी कहा जाता है कि ये पाक माह गरीबों को उनका हक अदा करने का महीना माना जाता है। बताया जाता है कि जैसे इस महीने में रोज़ा रखने का खास महत्व होता है ठीक उसी तरह रोज़े रखने वाले व्यक्ति को तब तक रोज़ा इफ्तार नहीं करना चाहिए जब तक वह किसी गरीब रोज़ेदार को इफ्तार का समान न दे दे। कहते हैं एक मात्र रोज़ा ही है जो खुदा और बंदे के बीच गुप्त होता है, क्योंकि नमाज़ पढ़ते हुए व्यक्ति को सब देख सकते हैं। मगर रोज़ेदार कब क्या खा रहा है इस बात का पता किसी को नहीं होता।
इसके अलावा रोज़ा रखते समय किन बातों का ध्यान रखा जाता है इस बारे में भी बताया गया है। कहते हैं रोज़े रखने वाले इंसान को कभी किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए। सच्चे मन से रोज़ा रखने का प्रावधान होता है। रोज़ा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंदर किसी भी तरह का घमंड नहीं रखना चाहिए क्योंकि कहते हैं इससे रोज़ा अल्लाह की बारगाह में कबूल नहीं होता। खुदा का फरमान है कि रोज़ेदार का हर एक पल इबादत में गुजरना चाहिए। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि रोज़ा रखने वाले व्यक्ति को कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे किसी दूसरे को शख़्स को परेशानी हो।