Edited By Lata,Updated: 08 Oct, 2019 10:53 AM
पिता की मृत्यु के बाद गदाधर रामकृष्ण परमहंस पर परिवार का पूरा भार आ गया था।
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पिता की मृत्यु के बाद गदाधर रामकृष्ण परमहंस पर परिवार का पूरा भार आ गया था। दक्षिणेश्वर में पुजारी के तौर पर उन्हें 20 रुपए प्रतिमाह पर नौकरी मिल गई। हालांकि तब यह उनके परिवार के लिए पर्याप्त था। अभी एक महीना भी नहीं हुआ था कि मंदिर कमेटी के पास उनकी शिकायत पहुंच गई। किसी ने कमेटी में शिकायत कर दी थी कि रामकृष्ण पहले खुद प्रसाद चख लेते हैं, उसके बाद मां काली को भोग चढ़ाते हैं। फूल सूंघकर अॢपत करते हैं। पूजा करने के उनके इस ढंग पर कमेटी के सदस्यों को बड़ा आश्चर्य हुआ और कैफियत लेने के लिए कमेटी के सदस्य उनके पास पहुंचे।
कमेटी के एक सदस्य ने उनसे पूछा, ''यह कहां तक सच है कि तुम फूल सूंघ कर देवता पर चढ़ाते हो? इस पर रामकृष्ण ने बहुत ही सहज अंदाज में कहा, ''हां, यह सच है। मैं पहले देख लेता हूं कि जो फूल मैं मां को अर्पित कर रहा हूं उसमें कुछ सुगंध है भी या नहीं। अगर फूल में सुगंध नहीं है तो मैं उसे क्यों चढ़ाऊं? दूसरे सदस्य ने पूछा, ''यह भी सुना है कि मां काली को भोग लगाने से पहले तुम अपना भोग लगाते हो? इस बार भी उन्होंने सहज भाव से उत्तर दिया, ''मैं भोग तो नहीं लगाता हूं, परन्तु चखकर अवश्य देख लेता हूं। घर में मेरी मां जब कोई चीज बनाती थी तो पहले चखकर देख लेती थी, उसके बाद हमें खाने को देती थी।
शिकायत को सही पाकर कमेटी के सदस्य एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। इस बीच रामकृष्ण ने कहा, ''क्या मालूम, जो चीज किसी भक्त ने मां काली के भोग के लिए लाकर रखी है या मैंने खुद बनाई है, वह मां को अर्पित करने योग्य है भी या नहीं? स्पष्ट शब्दों में रामकृष्ण का जवाब सुनकर कमेटी के सदस्य निरुत्तर होकर लौट गए।