Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Apr, 2019 02:51 PM
भारत वर्ष में अनेक तीर्थ हैं। इन तीर्थों में अवतार रूप में भगवान ने निवास किया अथवा भ्रमण किया एवं अन्य किसी कर्म के लिए भूमि की रज को पवित्र किया। इन सभी तीर्थों का पुराणों में रामायण, महाभारत में अथवा
ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)
भारत वर्ष में अनेक तीर्थ हैं। इन तीर्थों में अवतार रूप में भगवान ने निवास किया अथवा भ्रमण किया एवं अन्य किसी कर्म के लिए भूमि की रज को पवित्र किया। इन सभी तीर्थों का पुराणों में रामायण, महाभारत में अथवा अन्य धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है। भारत का चित्रकूट भी एक ऐसा स्थान है जिसकी रज-रज भगवान की दिव्य सत्ता से ओत-प्रोत है। भगवान विष्णु अपने राम अवतार में बारह वर्षों तक वनों में भ्रमण करते रहे। ऐसा माना जाता है कि चित्रकूट की पावन भूमि पर भगवान राम साढ़े ग्यारह वर्षों तक रहे। चित्रकूट का प्राकृतिक परिवेश सीता जी को इतना अच्छा लगा था कि उन्होंने श्रीराम जी से वनवास की अवधि वहीं पर बिताने का आग्रह किया था।
चित्रकूट, प्राकृतिक संपदा से भरपूर है। ऊंचे-ऊंचे शैल शिखर, हरे-भरे पेड़-पौधे, विभिन्न तरह के फलों की खुशबू, मखमली चादर ओढ़े हरित भूमि, ये सब हर किसी को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। श्रीराम जी भी भला इससे अछूते क्यों रहते?
कर्क रेखा के निकट होने के कारण चित्रकूट का मौसम परिवर्तित होता रहता है। वाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत रामायण में चित्रकूट का प्राकृतिक सौष्ठव बखूबी वर्णित हुआ है। भगवान वाल्मीकि तथा गोस्वामी तुलसीदास ने चित्रकूट के प्राकृतिक सौंदर्य का श्रीराम जी व सीता जी के शब्दों में वर्णन किया है, वह साहित्यिक दृष्टि से अतुलनीय है।
भगवान राम, सीता, लक्ष्मण को चित्रकूट का परिवेश इतना अच्छा लगा कि वे वहीं पर बस गए। पदम् पुराण, स्कन्द पुराण, मेघदूत, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया भी चित्रकूट का वर्णन करते हुए नहीं थकते।
चित्रकूट समुद्र तल से अठारह सौ फुट की ऊंचाई पर है। रहस्यमयी गुफाओं, उतंग शैल-शिखरों, नदियों, संतों के अखाड़ों, मंदिरों की घनघनाती घंटियों आदि से बरबस ही लोग आकृष्ट हुए बिना नहीं रहते। गोस्वामी तुलसीदास भी लम्बे अर्से तक चित्रकूट में रहे थे।
वहां उन्होंने कुटिया बनाकर बहुत समय तक श्रीराम की कथा का वाचन किया था। तुलसीदास जी की कुटिया एवं वह पीपल का पेड़ चित्रकूट में आज भी विद्यमान हैं। इस वृक्ष के संबंध में कहा जाता है कि इसके ऊपर तोते के रूप में हनुमान जी रहते थे। पन्ना नरेश को जब पुत्र रत्न प्राप्त हुआ, तब उन्होंने उस खुशी के अवसर पर चित्रकूट में पांच सौ पैंसठ मंदिर बनवाए।