Kundli Tv- मायावी रावण ने रचे थे हिंदू धर्म के ये खास ग्रंथ

Edited By Jyoti,Updated: 06 Oct, 2018 01:47 PM

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रावण का नाम सुनते ही हर किसी के मन में क्रोध पैदा हो जाता है। माता सीता का हरण कर उन्हें पाने के लिए श्री राम से युद्ध करने वाला रावण विश्रवा का पुत्र था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऋषि पुलस्त्य जगत पिता ब्रह्मा के पुत्र थे।

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रावण का नाम सुनते ही हर किसी के मन में क्रोध पैदा हो जाता है। माता सीता का हरण कर उन्हें पाने के लिए श्री राम से युद्ध करने वाला रावण विश्रवा का पुत्र था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऋषि पुलस्त्य जगत पिता ब्रह्मा के पुत्र थे। उनके पुत्र हुए विश्रवा। जिनकी पहली पत्नी महर्षि भारद्वाज की पुत्री के गर्भ से धन के देवता कुबेर का जन्म हुआ। दूसरी पत्नी राक्षस राज सुमाली की बेटी कैकसी थी। उनके तीन बेटे हुए रावण, कुंभकर्ण और विभीषण। जैन धर्म के पुराणों के अनुसार दशानन को प्रति‍-नारायण कहा गया है। तभी तो उनकी गिनती जैन धर्म के 64 शलाका पुरुषों में होती है।

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कहा जाता है कि रावण को केवल उस युग का प्रख्यात पंडित ही नहीं, बल्कि बहुत बड़ा वैज्ञानिक भी माना जाता था। उसके पास असीम ज्ञान था। कहा जाता है कि इंद्रजाल जैसी अथर्ववेद मूलक विद्या की खोज रावण ने ही की थी। उसके पास सुषेण जैसे वैद्य थे, जिन्हें देश-विदेश में पाई जाने वाली जीवन रक्षक औषधियों की जानकारी के साथ-साथ उनके स्थान, गुण-धर्म आदि के बारे में भी पूरा जानकारी थी। कुछ किंवदंतियों की मानें तो रावण की आज्ञा से ही सुषेण वैद्य ने मूर्छित लक्ष्मण की जान बचाई थी।


रावण के बारे में न केवल हिंदू धर्म के ग्रंथ वाल्मीकि रामायण के अलावा पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, महाभारत, आनंद रामायण, दशावतारचरित आदि में पढ़ने को मिलता है बल्कि जैन धर्म ग्रंथों में भी रावण के बारे में अच्छे से वर्णन किया गया है। 


शिव का परम मायावी रावण भक्त कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ बहु-विद्याओं का भी जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। मान्यता है कि रावण ने कई शास्त्रों की रचना की थी। 


आइए जानते हैं कि कौन-कौन से हैं ये शास्त्र- 
शिव तांडव स्तोत्र: हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले ज्यादातर लोगों को पता होगा कि शिव तांडव की रचना रावण द्वारा की गई थी। जिसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि अंहकार में चूर रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लिया था औकर उसे लंका ले जाना चाहता था। भगवान शंकर ने रावण के इस अंहकार को चूर करने के लिए अपने अंगूठे को ज़रा सा दबा दबाया तो रावण के हाथ उसके नीचे आ गए। लाख कोशिशों के बाद भी जब रावण से वह पर्वत हिला तक नहीं तो उसने अपनी भूल का पश्चाताप करते हुए शिव तांडव स्तोत्र से भगवान शंकर की आरधना की तो भोलेनाथ ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसके माफ कर दिया था। वास्तव में रावण द्वारा की गई ये क्षमा याचना ही कालांतर में शिव तांडव स्तोत्र कहलाया। 

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अरुण संहिता: कहा जाता है कि संस्कृत के इस मूल ग्रंथ का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है। मान्यता के अनुसार इस ग्रंथ का ज्ञान सूर्य के सार्थी अरुण ने लंकाधिपति रावण को दिया था। यह ग्रंथ जन्म कुण्डली, हस्त रेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र का मिश्रण है।


रावण संहिता: इस ग्रंथ के नाम ही पता चलता है कि इस ग्रंथ में रावण के जीवन से जुड़ी हर बात वर्णित है। रावण संहिता रावण के संपूर्ण जीवन के बारे में बताती है। इसके साथ ही इसमें ज्योतिष की बेहतर जानकारियों का भी भंडार है।

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चिकित्सा और तंत्र के क्षेत्र में रावण के ग्रंथ-
दस शतकात्मक अर्कप्रकाश
दस पटलात्मक उड्डीशतंत्र
कुमारतंत्र
नाड़ी परीक्षा 
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रावण के ये चारों ग्रंथ अद्भुत जानकारी से भरे हैं। रावण ने अंगूठे के मूल में चलने वाली धमनी को जीवन नाड़ी बताया है, जो सर्वांग-स्थिति व सुख-दु:ख को बताती है। रावण के अनुसार औरतों में वाम हाथ एवं पांव तथा पुरुषों में दक्षिण हाथ एवं पांव की नाड़ियों का परीक्षण करना चाहिए।
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