Edited By Jyoti,Updated: 30 Jun, 2019 05:07 PM
हिंदू पंचांग के अनुसार आज रविवार जून महीने की आख़िरी तारीख़ 30 जून को 2019 प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। बता दें इस दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रदोष काल से मतलब संध्या काल से होता है। इसलिए शाम के समय प्रदोषकाल में...
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हिंदू पंचांग के अनुसार आज रविवार जून महीने की आख़िरी तारीख़ 30 जून को 2019 प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। बता दें इस दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रदोष काल से मतलब संध्या काल से होता है। इसलिए शाम के समय प्रदोषकाल में भगवान शिव जी की विशेष पूजा आराधना करने से भोलेनाथ हर तरह की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। कहा जाता है प्रदोष व्रत को हिंदू धर्म में अनेक व्रतों में प्रथम स्थान प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिव पूजा करने से जीवन के पुराने से पुराने पाप भी धुल जाते हैं। तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ जानकारी बातें-
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प्रदोष व्रत का महत्व
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत रखने वाल जातक को 2 गायों के दान करने के समान पुण्यफल मिलता है। शास्त्रों में इससे जुड़ी कथा आती है कि एक दिन जब चारों दिशाओं में अधर्म का बोलबाला नज़र आएगा, अन्याय और अनाचार अपनी चरम सीमा पर होगा। व्यक्ति में स्वार्थ भाव बढ़ने लगेगा, और व्यक्ति सत्कर्म के स्थान पर कुकर्म के कार्यों में आनंद लेने वाले वाले अनेक लोग पाप के भागी बनेंगे।
इस स्थिति में पापों से बचने के लिए प्रदोष का व्रत करने के साथ भगवान शिव जी की विशेष पूजा करेंगे तो उनके इस जन्म ही नहीं बल्कि अन्य जन्म-जन्मान्तर के पाप कर्म नष्ट हो जाएंगे और उन्हें उत्तम लोक की प्राप्ति होगी।
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प्रदोष व्रत के दिन ऐसे करें शिव पूजा-
सूर्यास्त के समय शिव मंदिर में जाकर 251 बार महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
गंगाजल से शिव जी का अभिषेक करें।
108 बिना खंडित बेलपत्र अर्पित करें।
फिर ऋतुफल का भोग शिव जी को लगाएं, भेंट करने के बाद दंडवत प्रणाम करते हुए सभी पाप कर्मों की मुक्ति की प्रार्थना करें।
ध्यान रहे मंदिर से बाहर निकले पर कोई दरिद्र मिल जाए तो उन्हें कुछ न कुछ दान अवश्य करें। इससे आपकी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
मान्यता है ऐसा करने से जाने-अनजाने में हुए सभी तरह के पुराने से पुराने पाप कर्मों के फल से मुक्ति मिल जाती है।
शिव के प्रिय मंत्र-
ॐ नमः शिवाय।
नमो नीलकण्ठाय।
ॐ पार्वतीपतये नमः।
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।
ऊर्ध्व भू फट्।
इं क्षं मं औं अं।
प्रौं ह्रीं ठः।