शिंगणापुर: शनि दर्शनों के लिए जाने से पहले पढ़ें ये जानकारी

Edited By ,Updated: 11 Feb, 2017 01:19 PM

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किसी घर या अलमारी को ताला न हो तो हमें निश्चित ही अचरज लगता है किंतु सारे गांव के ही मकानों में दरवाजे या खिड़कियां नहीं हैं और दुनिया का यह अद्भुत आश्चर्य अहमदनगर जिले के नेवासरा तहसील

किसी घर या अलमारी को ताला न हो तो हमें निश्चित ही अचरज लगता है किंतु सारे गांव के ही मकानों में दरवाजे या खिड़कियां नहीं हैं और दुनिया का यह अद्भुत आश्चर्य अहमदनगर जिले के नेवासरा तहसील में स्थित गांव शिंगणापुर में आपको दिखाई देता है। शिंगणापुर गांव में किसी भी घर के दरवाजे में ताला नहीं लगता। कुंडी तथा कड़ी लगा कर ताला नहीं लगाया जाता। घर में लोग अलमारी, सूटकेस आदि सामान तक नहीं रखते। बताया जाता है कि यहां भगवान शनि की आज्ञा से ही मकानों को खिड़कियां और दरवाजे नहीं लगाए जाते हैं लेकिन सिर्फ कुत्ते व बिल्लियों का घर में प्रवेश न हो इसलिए बांस का ढंकना दरवाजे पर लगाया जाता है।


शिंगणापुर में शनि महाराज के प्रभाव से चोरी करने का कोई प्रयास नहीं करता। यदि किसी चोर ने चोरी करने का प्रयास किया तो उसे शनि भगवान अवश्य दंडित करते हैं या तो वह अपनी आंखें खो बैठता है या रास्ता भूल जाता है और शनि भगवान के परिसर में चक्कर काटता रहता है उसे तब ही मुक्ति मिलती है जब वह भगवान से क्षमा याचना करता है।


महाराष्ट्र का अहमदनगर जिला अब संतों की भूमि कहलाने लगा है, जिले में शिरडी के साईंबाबा, नेवास तहसील के देवगढ़ में श्री दत्तात्रेय महाराज का मंदिर, पाथड़ी तहसील के मोगकरे में जगदम्बा माता मंदिर, कर्जत तहसील के सिद्धटेक में अष्टविनायक में से एक गणेश जी का मंदिर, कोपरगांव तहसील के सरकुरी में उपासनी महाराज तथा नेवासा तहसील के शिंगणापुर में भगवान श्री शनैश्चर महाराज का स्वयंभू जाग्रत देवस्थान है।


देश से लाखों भक्तगण भगवान शनि के दर्शन के लिए यहां शिंगणापुर आते हैं। यहां भगवान शनि की स्वयंभू मूर्त काले रंग की है। 5&9 इंच ऊंची और 1&6 इंच चौड़ी आकार की यह मूर्त एक बड़े चबूतरे पर खड़ी है। मूर्त को स्वयंभू होने की एक प्राचीनकालीन कथा भी यहां काफी चर्चित है। शनि भगवान के लिए किसी का छत्र (आधार) मान्य नहीं है इसलिए भगवान का मंदिर नहीं बनाया गया है। मूर्त के समीप ही एक वृक्ष है जो बढ़ कर मूर्त के ऊपर तक कई बार आता है लेकिन मूर्त को छाया देने से पूर्व ही उस वृक्ष की पत्तियां या तो जलकर खाक हो जाती हैं या फिर टूट जाती हैं इसलिए कहा जाता है कि यहां वृक्ष है पर छाया नहीं है। जिस शनिवार के दिन अमावस होती है उस दिन शनि शिंगणापुर में बड़ी यात्रा भरती है। गुढ़ी पड़वा-चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी गुड़ी पड़वा के दिन नूतन वर्षारंभ के अवसर पर भक्तगण अपने संकट निवारण के लिए दर्शन करने शिंगणापुर आते हैं।


शनि जयंती-वैशाख की चतुर्दशी के दिन शनि जयंती का उत्सव मनाया जाता है। प्रसिद्ध ब्राह्मणों को बुलाकर ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा लघुरुद्राभिषेक किया जाता है। इसके अलावा हर शनिवार, सोमवार को यहां भगवान शनि की पूजा की जाती है। रोज सुबह 4 बजे तथा रात 6.45 बजे आरती होती है।

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