Edited By Jyoti,Updated: 25 Sep, 2018 09:57 AM
प्राचीन समय की बात है, एक बार एक गुरू जी ने अपने शिष्यों को एक ज्ञान का बात समझाने के लिए एक सवाल पूछा।
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प्राचीन समय की बात है, एक बार एक गुरू जी ने अपने शिष्यों को एक ज्ञान का बात समझाने के लिए एक सवाल पूछा। उन्होंने सारे शिष्यों को एक साथ बिठाया और कहने लगे कि मान लो, कि आप दूध का एक गिलास हाथ में लेकर खड़े हैं। इस दौरान अचानक कोई आपको पीछे से धक्का दे देता है, तो क्या होगा। सभी शिष्यों में से एक ने उत्तर देते हुए कहा कि गिलास से दूध छलक जाएगा। इस पर गुरू जी ने कहा कि तो ये बताओ की दूध क्यों छलका। तो दूसरे शिष्य मे जवाब में कहा क्योंकि किसी ने धक्का दिया। इसके चलते गिलास में दूध छलक गया।
लेकिन गुरू जी ने अपनी शिष्यों के उत्तर को गलत करार दिया। अब आप सोच रहे होंगे कि एेसा क्यों। आइए बताते हैं, कि गुरू जी ने उनके उत्तर को गलत क्यों कहा।
गुरू जी ने उन्हें समझाते हुए कहा कि गिलास में दूध था, इसलिए दूध छलका। धक्का लगने पर दूध का छलकना स्वाभावित था। इसी तरह से व्यक्ति का जीवन भी एेसा ही होता, जब जीवन में इंसान को ठोकरें यानि धक्के लगते हैं तो उसके व्यवहार से वास्तविकता यानि उसकी असलियत बाहर आती है। मतलब जो मानव के पास होता है, वही छलकता है जैसे धैर्य, मौन, कृतज्ञता, स्वाभिमान, निश्चिंतता या फिर क्रोध, कड़वाहट, पागलपन, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा आदि। आप का सच उस समय तक सामने नहीं आता, जब तक आपको धक्का न लगे।
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