Edited By ,Updated: 16 Apr, 2017 02:32 PM
यूनानी तत्ववेत्ता डायोजनीज से किसी अजनबी व्यक्ति ने पूछा, ‘‘धर्म क्या है?’’
यूनानी तत्ववेत्ता डायोजनीज से किसी अजनबी व्यक्ति ने पूछा, ‘‘धर्म क्या है?’’
डायोजनीज ने कहा, ‘‘ऐसे धर्म की व्याख्या कैसे की जा सकती है?’’
अजनबी ने कहा, ‘‘मैं बहुत जल्दी में हूं इसलिए आप 5 मिनट में धर्म की व्याख्या कर दीजिए।’’
डायोजनीज बोला, ‘‘तुम जल्दी में हो, वैसे मैं भी जल्दी में हूं। इतने कम समय में धर्म को समझना मुश्किल है, ऐसा करो तुम अपना पता मुझे लिखकर दे दो तो मैं धर्म की लिखित व्याख्या तुम तक पहुंचा दूंगा।’’
अजनबी व्यक्ति ने कागज और पैन निकाला, अपना पता लिखा और दे दिया।
डायोजनीज ने पूछा, ‘‘यह तुम्हारा स्थायी पता है? इस जगह को छोड़कर तुम कहीं जाते तो नहीं हो?’’
अजनबी बोला, ‘‘कभी-कभी बाहर चला जाता हूं। ऐसा करता हूं कि मैं वहां का पता भी आपको दे देता हूं।’’
डायोजनीज ने कहा, ‘‘यह मामला अस्थिरता का नहीं, स्थिरता का है। तुम जहां स्थायी रूप से रहते हो वहां का पता मिले बिना मैं तुमसे पत्र व्यवहार नहीं कर सकता। तुम मुझे उस जगह का पता बताओ जहां तुम हमेशा रहते हो।’’
डायोजनीज के बार-बार एक ही बात कहने पर अजनबी झल्ला उठा। वह अपने दोनों हाथ झटकते हुए बोला, ‘‘मैं यहां रहता हूं। कुछ बताना है तो बताओ वर्ना चले जाओ।’’
डायोजनीज ने मुस्कुरा कर कहा, ‘‘बस यही तो धर्म है। धर्म का अर्थ है अपने आपमें रहना। आत्मचिंतन करना, अपने आपको पहचानना। बस यही व्याख्या है धर्म की। आज हर कोई धर्म की बात कर रहा है। धर्म के नाम पर लड़ाई-झगड़े हो रहे हैं। असहिष्णुता का माहौल बना हुआ है। कर्मकांड को धर्म का दर्जा दे दिया गया है, पर वास्तविक धर्म हमारे अंदर ही छुपा हुआ है। जिस दिन हमने इस बात को समझ लिया धर्म का वास्तविक रूप हमारे समक्ष प्रकट हो जाएगा।’’