जीवन को बर्बाद करने के लिए काफी है ये एक चीज़, रखें इससे दूरी बनाकर

Edited By Lata,Updated: 29 Aug, 2019 04:18 PM

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अक्सर ऐसा देखा जाता है कि व्यक्ति अपनी मेहनत के द्वारा बहुत सारी धन-दौलत जमा कर लेता है और सोचता है

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अक्सर ऐसा देखा जाता है कि व्यक्ति अपनी मेहनत के द्वारा बहुत सारी धन-दौलत जमा कर लेता है और सोचता है कि सही समय आने पर इसका उपयोग करेगा। अगर देखा जाए तो इंसान की सोच किसी हद तक ठीक होती है, लेकिन जीवन में हम कितने पल जिएंगे इसके बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, जिससे हमें जीवन में एक बहुत बड़ी सीख मिलती है। 
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ललितपुर राज्य में प्रत्यूष नंदन कोठारी नामक धनवान व्यक्ति रहता था, लेकिन स्वभाव से अत्यंत कंजूस था। उसके पास सोने का एक बहुत पुराना बर्तन था। पूर्वजों द्वारा मिले इस अलौकिक पात्र के बारे में वह सोचता कि जब जीवन में कोई बेहद महत्वपूर्ण मौका आएगा, तब वह उस बर्तन को निकालेगा। एक बार उसके यहां ललितपुर राज्य के मंत्री प्रताप सिंह बुंदेला पधारे। उनके आने पर प्रत्यूष नंदन ने सोचा कि महज एक मंत्री के लिए स्वर्ण पात्र क्यों निकाला जाए। फिर उसने मन ही मन फैसला किया कि किसी बड़े आदमी के सामने ही इसे निकाला जाएगा। यह सोच कर उसने साधारण बर्तनों में ही मंत्री को खाना परोसा। फिर एक दिन उसके यहां काशी के महान संत सदानंद स्वामी पधारे। तब उसने सोचा कि इस संत को भला सोने की क्या पहचान होगी। वे इस पात्र के महत्व को क्या समझेंगे। यह विचार कर कंजूस कोठारी ने अपना वह बर्तन नहीं निकाला और उन्हें भी साधारण पात्र में भोजन परोसा। कुछ दिनों के बाद राजा ललित आदित्य बर्मन भी कोठारी के घर पर आए। तब भी प्रत्यूष नंदन कोठारी ने राजा ललित आदित्य बर्मन के साथ साधारण पात्र में ही भोजन किया। उसे तब लगा कि वह स्वर्ण पात्र राजा की तुलना में कहीं अधिक मूल्यवान है।

जब कोठारी के बच्चों की शादी हुई, तब भी वह बर्तन नहीं निकला और लोभ के कारण कोठारी ने उसे कभी देखा तक नहीं। ऐसे ही बहुत से दिन गुजरते गए और एक दिन कोठारी भी इस दुनिया से विदा हो गया। तेरहवीं के बाद साफ-सफाई की गई तो वह पात्र अंत्यंत बुरी हालत में अन्य सामान के साथ मिला। वर्षों से पड़े रहने के कारण वह गंदा हो गया था। लगता ही नहीं था कि वह सोने का है। कोठारी के बच्चों ने काम की सारी चीजें निकालकर पास रख लीं और वह बर्तन नौकरों को भोजन करने के लिए दान में दे दिया।

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