गाय को मारने में नहीं, पालने में है अधिक लाभ

Edited By Jyoti,Updated: 19 Apr, 2020 11:28 AM

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भारत गौ मांस का निर्यात करता है- यह अत्यंत शर्मनाक बात है। जिस देश में गाय को मां माना जाता हो, जिस देश में गौ चारण और गौ पालन के लिए स्वयं परब्रह्म परमात्मा अवतार लेते हों

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भारत गौ मांस का निर्यात करता है- यह अत्यंत शर्मनाक बात है। जिस देश में गाय को मां माना जाता हो, जिस देश में गौ चारण और गौ पालन के लिए स्वयं परब्रह्म परमात्मा अवतार लेते हों, वह देश गौ मांस का निर्यात करे- इससे बढ़ कर विडम्बना और क्या हो सकती है? भारत-वियतनाम, मलेशिया, सऊदी अरब, मिस्र, यू.ए.ई. समेत संसार के 65 देशों को गौमांस का निर्यात करता है।

31 मार्च सन् 2015 ई. तक भारत में पंजीकृत बूचडखानों की संख्या 1632 रही है जबकि 30,000 से अधिक गैर पंजीकृत बूचडखाने हैं। सबसे ज्यादा बूचडखाने 316 महाराष्ट्र में हैं।

गाय के विभिन्न अंगों से विभिन्न वस्तुएं बनाई जाती हैं, जैसे सींग से आभूषण, कान के झुमके, गले का हार, कंघी, कोट के बटन, अग्निशमन प्रोडक्ट आदि। उसकी चमड़ी से जूते, चप्पल, बैल्ट आदि बनाए जाते हैं। जिलेटिन एक बाई प्रोडक्ट है जिसका प्रयोग जैली और दूसरे खाद्य उत्पादों, कड़वी दवाओं की कोटिंग के लिए होता है।

इसकी हड्डी का उपयोग साबुन, टूथपेस्ट, बोन चायना के उत्पादों तथा शक्कर को सफेद बनाने में होता है। इसकी आंतों का उपयोग सर्जरी में सिलाई के लिए प्रयुक्त होने वाले धागों में किया जाता है। मांस की सिलने तथा आपस में जोडऩे में भी इसका प्रयोग होता है। बैडमिंटन और टैनिस के रैकेट, वायलिन के तार तथा अन्य संगीत-यंत्रों में इसका प्रयोग होता है।

इसकी पूंछ के बाल से पेंट-ब्रश और डस्टर बनते हैं। इसकी चर्बी से बिस्किट पपड़ीदार और कुरकुरे बनते हैं। इसके रक्त से बनने वाले सीरम का प्रयोग हीमोग्लोबिन में आयरन टॉनिक तथा जानवरों के टीके बनाने में किया जाता है। इसकी ग्रंथि से इंसुलिन, ट्रिप्टेन, हेपेरिन बनता है।

मुगलकाल के अनेक कालखंडों में गौहत्या बंद थी। 1857 ई. में 2500 मुसलमानों ने एक विजार (सांड)- की प्राण रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। अंग्रेज शासकों ने मुसलमानों से विजार (सांड) की सवारी करने को कहा। मुसलमानों ने कहा विजार शंकर जी के बेटे हैं, हम विजार की सवारी नहीं करेंगे। इस पर अंग्रेजों ने बंदूक और तोप चलवा कर 2500 मुसलमानों को मरवा दिया था।

आज मुम्बई (महाराष्ट्र) में देवनार तथा हैदराबाद (आंध्र प्रदेश) में अलकबीर जैसे गौ बूचडखाने चल रहे हैं। गौहत्या को धर्मभ्रष्ट अंग्रेजों ने प्रश्रय दिया। उन्होंने मुफ्त में चाय पिलाई, विलायती घी की पूड़ियां मुफ्त में बांटीं। अब चाय और विलायती घी के हम गुलाम हो गए। गौहत्या और गौमांस का प्रयोग भी उन्हीं की एक चाल है जबकि गाय इतनी उपयोगी है कि इसका दूध तो अमृत है ही गौमूत्र और गोबर भी अद्भुत उपयोगी है। वर्तमान परीक्षणों से यह साबित हो गया है कि गाय के गोबर से लिपे घरों पर आण्विक विकिरण का प्रभाव नहीं पड़ता।

अब यदि अणुयुद्ध हुआ, तब गाय के गोबर से लिपा हुआ घर ही बचेगा। एटमी परीक्षण से जो विकिरण होता है, उसे गाय का गोबर नष्ट कर देता है। इसीलिए आज सम्पूर्ण अमरीका में गौशालाएं बन रही हैं। वहां आदमी गाय को नहीं पालता, बल्कि गाय आदमी को पालती है। सऊदी अरब के अलरियाज में 38 हजार गायों की गौशाला बनी है। 5 हजार भारतीय देसी नस्ल की गाएं हैं। गौवंश के मरने पर आदर के साथ दफना किया जाता है। गौमूत्र से शूगर, ब्लड प्रैशर, कैंसर, पेट के रोग, पीलिया, जिगर आदि ठीक हो जाते हैं। गाय के गोबर से चर्मरोग ठीक हो जाते हैं। मांसाहार सभी पापों एवं रोगों का जनक है। यहां तक कि गौमांस तो कोढ़ रोग उत्पन्न करता है। अत: गाय को मार कर नहीं बल्कि पालकर अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

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