Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jun, 2020 01:46 PM
एक ऋषि के पास एक युवक ज्ञान के लिए पहुंचा, ज्ञान प्राप्ति के बाद शिष्य ने गुरु दक्षिणा में गुरु को कुछ देना चाहा। गुरु ने दक्षिणा के रूप में वह चीज मांगी, जो बिल्कुल व्यर्थ हो। शिष्य व्यर्थ चीज की
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Religious Katha: एक ऋषि के पास एक युवक ज्ञान के लिए पहुंचा, ज्ञान प्राप्ति के बाद शिष्य ने गुरु दक्षिणा में गुरु को कुछ देना चाहा। गुरु ने दक्षिणा के रूप में वह चीज मांगी, जो बिल्कुल व्यर्थ हो। शिष्य व्यर्थ चीज की खोज में निकल पड़ा।
उसने मिट्टी की ओर हाथ बढ़ाया तो मिट्टी बोल पड़ी, ‘‘तुम मुझे व्यर्थ समझ रहे हो? क्या तुम्हें पता नहीं है कि इस दुनिया का सारा वैभव मेरे ही गर्भ से प्रकट होता है? ये विविध वनस्पतियां, ये रूप, रस और गंध सब कहां से आते हैं?’’
शिष्य आगे बढ़ गया। थोड़ी दूरी पर उसे एक पत्थर मिला। शिष्य ने सोचा, इसे ही ले चलूं। जैसे ही उसे लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पत्थर से आवाज आई, ‘‘तुम इतने ज्ञानी होकर भी मुझे बेकार क्यों मान रहे हो? तुम अपने भवन और अट्टलिकाएं किससे बनाते हो? तुम्हारे मंदिरों में किसे गढ़ कर देव प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं? मेरे इतने उपयोग के बाद भी तुम मुझे व्यर्थ मान रहे हो।’’
यह सुनकर शिष्य ने फिर अपना हाथ खींच लिया। वह सोचने लगा, जब मिट्टी और पत्थर इतने उपयोगी हैं तो आखिर व्यर्थ क्या हो सकता है? उसके मन से आवाज आई कि सृष्टि का हर पदार्थ अपने आप में उपयोगी है तो ऐसा क्या है जो मैं गुरु जी को दक्षिणा में दे सकूं।
रास्ते में उसे एक संत मिले, युवक ने उन्हें अपनी बात बताई। संत मुस्कुराए और युवक से कहा कि व्यर्थ की चीजें वे हैं जिनसे किसी का भी भला नहीं हो सकता। व्यक्ति के भीतर का अहंकार ही एक ऐसा तत्व है, जिसका कहीं कोई उपयोग नहीं। यह सुनकर शिष्य सीधा गुरु जी के पास गया और उनके पैरों में गिर पड़ा। वह दक्षिणा में अपना अहंकार देने आया था।