संत बोले सहज सुभाए, संत का कहा बिरथा न जाए

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Apr, 2020 10:12 AM

religious katha

किसी गांव में एक महात्मा डफली बजा कर बहुत सुंदर-सुंदर भजन बोलते हुए भिक्षा मांगने आए। कंधे पर एक बड़ा सा थैला लटकाया हुआ था जिस घर से जो भी मिलता थैले में डाल लेते। गली के मोड़ पर एक घर के आगे वह भजन

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किसी गांव में एक महात्मा डफली बजा कर बहुत सुंदर-सुंदर भजन बोलते हुए भिक्षा मांगने आए। कंधे पर एक बड़ा सा थैला लटकाया हुआ था जिस घर से जो भी मिलता थैले में डाल लेते। गली के मोड़ पर एक घर के आगे वह भजन गा रहे थे। अंदर से कमला नामक एक साधारण सी महिला दरवाजा खोल कर बाहर आई। कमला को उन संत महात्मा के मुख मंडल पर न जाने क्या दिखाई दिया। पहले तो कमला ने महात्मा जी के चरण स्पर्श किए और फिर हाथ जोड़ कर आग्रह पूर्वक उन्हें घर के भीतर ले आई। महात्मा जी अपनी डफली और थैला जमीन पर रखकर कुर्सी पर बैठ गए।

कमला महात्मा जी से बोली, ‘‘महात्मा जी आप भजन बहुत ही सुंदर बोलते हैं। आपका मठ या आश्रम कहां है?’’

महात्मा बोले, ‘‘बेटी संत और पानी चलते रहने चाहिएं। हमें गुरु की आज्ञा है, कहीं रुकना नहीं। एकांत में भजन-सिमरण करना है और भ्रमण करते समय भजन बोल कर लोगों को जगाना है। मेरे साथ दो साथी और भी हैं वे साथ वाले कस्बे में गए हैं। दोपहर को गांव के बाहर मिलेंगे। इकट्ठे खाना खाएंगे और अगले गांव चल पड़ेंगे।’’

कमला बोली, ‘‘महात्मा जी, मेरे पति को स्वर्गवास हुए चार साल हो गए हैं। मेरे एक बेटी और एक बेटा है। दोनों पढ़तेे हैं। मैं गांव वालों के कपड़ों की सिलाई करके जैसे-तैसे गुजारा चलाती हूं। बस अब तो यही इच्छा है कि बच्चे अच्छी पढ़ाई करके कमाने योग्य हो जाएं और बेटी की शादी करके सुर्खरू हो जाऊं।’’

कमला बोली ,‘‘मैं भाग्यशाली हूं कि आपने मेरी विनती स्वीकार की और मेरे घर चरण डाल कर मेरे घर को पवित्र किया। मेरी एक विनती और स्वीकार कीजिए, घर में जो भी रूखा-सूखा बना है ग्रहण करें।’’

कमला का आग्रह स्वीकार करते हुए संत बोले, ‘‘जा मेरी बच्ची, दो चपाती और जो दाल-सब्जी बनी है ले आ।’’

कमला खाना लेने रसोई में गई थाली में भोजन परोस कर महात्मा जी के सामने मेज पर रख कर दिया। महात्मा जी ने भजन समाप्त किया। उठ कर हाथ धोए और कुछ मंत्रों का मुख में उच्चारण करके भोजन शुरू किया।

तभी स्कूल से बच्चे भी आ गए। बच्चों ने महात्मा जी को माथा टेका। महात्मा जी ने खाना समाप्त किया। अपनी डफली और थैला उठा कर चलने को तैयार हुए। कमला ने महात्मा जी को माथा टेका तो महात्मा जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘बेटी हमेशा खुश रहो। कल जिस काम से दिन शुरू करोगी सारा दिन वही काम करती रहोगी।’’ इतना कह कर महात्मा जी चले गए।

कमला ने बच्चों को खाना खिलाया और सिलाई मशीन पर काम करने बैठ गई।

शाम हुई तो काम से उठ कर रसोई में जाकर रात का खाना तैयार करने लगी। बेटा होम वर्क कर रहा था। मां ने बेटे को आवाज लगाई। तीनों ने मिल कर खाना खाया। इधर-उधर की बातें कर रहे थे कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

कमला ने दरवाजा खोला तो छ:-सात घर दूर रहने वाली सरिता नामक महिला खड़ी थी। राम-राम कहने के बाद वह बोली, ‘‘मैंने कल अपने भाई के घर जाना है मुझे कोई अच्छा सा सूट का कपड़ा दिखाओ।’’

कमला ने सरिता को सूटों का कपड़ा दिखाया। सरिता एक सूट का कपड़ा पसंद करके अलग निकाल कर कमला को पकड़ाते हुए बोली, ‘‘यह सूट मुझे कल शाम तक जरूर दे देना।’’ कमला के हामी भरने के बाद सरिता चली गई।

सुबह होते ही कमला उठी। हाथ-मुंह धोकर सरिता का सूट सिलने के लिए इंचीटेप निकाल कर कपड़े का माप करने लगी।

एक मीटर, दो, मीटर, तीन मीटर, चार मीटर...यह क्या! कमला हैरान थी कि एक सूट में इतने मीटर कपड़ा और कपड़ा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। वह मापती जा रही थी और कपड़े का ढेर बढ़ता जा रहा था। चाहते हुए भी उसके हाथ रुक नहीं रहे थे और उसे रत्ती भर थकावट भी हो रही थी। आज बच्चे स्कूल भी नहीं गए थे। दोनों कपड़ा इकट्ठा किए जा रहे थे।

शाम तक कपड़े के अम्बार लग गए। पास ही शहर में कपड़े के व्यापारी के कानों तक जब यह खबर पहुंची तो वह अपने मैनेजर को साथ लेकर कमला के घर पहुंच गया। कपड़े को जांचा और मैनेजर से सलाह करके सारा कपड़ा  खरीद लिया। उसने कमला को इतनी बड़ी रकम का चैक दिया जिससे कमला के बच्चों की पढ़ाई और बेटी की शादी बड़े आराम से हो सकती थी।

कमला के पड़ोस में एक खुशहाल परिवार रहता था। उस परिवार में रहने वाली जनक रानी नामक महिला कमला के घर आकर उसे बधाई देते हुए बोली, ‘‘बहन यह चमत्कार कैसे हुआ?’’

कमला बोली, ‘‘यह सब उन संतों के आशीर्वाद से हुआ है। मैंने तो बस उन्हें खाना ही खिलाया था। जाते-जाते उन संतों ने यह कहा कि जो काम सुबह करोगी, शाम तक वही करती रहोगी। आगे सब आपको पता ही है।’’

जनक रानी अंदर से जल भुन रही थी पर ऊपर से मुस्कुराती हुई चली गई। वह पछता रही थी कि संत तो उसके घर के बाहर भी आए थे पर उसने ध्यान ही नहीं दिया।

जनक रानी ने घर आकर अपने नौकर को सख्ती से कहा कि उस डफली वाले महात्मा का पता करो। जहां भी मिले उन्हें लेकर आओ। नौकर ने पता किया। दो गांव दूर वह महात्मा मिल गए। नौकर के मिन्नतें करने पर वह अगली सुबह नौकर के साथ जनक रानी के घर पधारे।

जनक रानी बड़ी खुश थी। उसने महात्मा जी को अंदर सोफे पर बिठाया। साथ ही कुर्सी पर स्वयं बैठकर नौकर को आदेश देने लगी, ‘‘चाय बनाकर लाओ...जल्दी खाना ले कर आओ।’’ आदि।

महात्मा जी ने चाय पी। खाना खाया और पलंग पर लेट गए। इधर जनक रानी को मन ही मन महात्मा पर खीझ आने लगी और मुंह में ही बुदबुदाने लगी,‘‘चाय भी पी ली, खाना भी ठूंस लिया और अब टांगें पसार कर सो गया है। पता नहीं कब जाएगा।’’

डेढ़ घंटा सोने के बाद महात्मा जी उठे और जाने के लिए दरवाजे पर पहुंचे तो वह बोली,‘‘महात्मा जी आप जा रहे हैं? मुझे कोई आशीर्वाद तो दिया ही नहीं।’’

महात्मा जी मुस्कुराए और बोले, ‘‘अच्छा! आशीर्वाद भी लेना है? जब सुबह उठेगी जो काम पहले करोगी वही दिन भर करती रहोगी।’’ इतना कहकर महात्मा जी चले गए।

जनक रानी जल्दी-जल्दी गांव की दुकान से दो मीटर कपड़ा खरीद कर घर लाई। घर से इंचीटेप लिया। दोनों वस्तुएं इकट्ठी अपने पलंग के पास रख लीं ताकि सुबह सबसे पहले यही काम करके और भी ज्यादा अमीर बन जाए।

शाम तो हो चुकी थी पर उसके हिसाब से आज रात होने में देर हो रही थी। खैर रात हुई। परिवार के सभी सदस्यों ने खाना खाया और सोने चले गए।

कमला ने जैसे बताया था। जनक रानी को वे दृश्य अभी से नजर आने शुरू हो गए थे। नींद कोसों दूर थी। पता नहीं आधी रात को कब नींद आई। सुबह नौकर दूध लेने गया तो दरवाजा खुलने की आवाज से जनक रानी की नींद खुल गई। जल्दी-जल्दी कपड़ा और इंचीटेप लेकर जमीन पर बैठी ही थी कि छींक आ गई।

यह क्या हो गया...एक छींक, दो छींक, तीन, चार, पांच। छींकें आती ही चली गईं  तथा रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं। उसका पति भाग कर गांव के वैद्य जी को बुला लाया। वैद्य जी भी बड़े हैरान हुए कि यह कैसा मर्ज है। कोई दवा अगर दे भी दूं तो खाएगी कैसे? वैद्य जी ने सिर दबाया, नाक भी दबा कर देखा पर छींकें तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं।

वैद्य जी जनक रानी के पति से बोले, ‘‘आप शहर से डाक्टर लेकर आएं। वह कोई टीका लगा दे तो शायद बात बात बन जाए।’’ जनक रानी के पति ने तांगा मंगवाया और शहर की ओर निकल गया।

इधर जनक रानी का छींकें मार-मार कर बुरा हाल हो रहा था। दोपहर बाद डाक्टर  को लेकर जनक रानी का पति घर में दाखिल हुआ। डाक्टर ने जनक रानी की नब्ज देख कर कहा, ‘‘मैं इंजैक्शन लगाता हूं उससे आराम मिल जाएगा।’’

डाक्टर ने इंजैक्शन सिरिंज में भरा और जनकरानी की बाजू में लगाने के बाद बैठ कर इंतजार करने लगे। यह दवा भी बेअसर मालूम हो रही थी। छींकें तो रुक ही नहीं रही थीं। अब डाक्टर ने कहा, ‘‘मेरी डाक्टरी लाइन में यह पहला केस है। आप इन्हें मेरे क्लीनिक ले जाने की तैयारी करें वहां जाकर ग्लूकोज में दवा मिला कर देने से आराम आएगा।’’

गांव के प्रधान की गाड़ी मंगवा ली गई परंतु आश्चर्य...गाड़ी में जनक रानी को बिठाते ही उसकी छींकें रुक गईं। घर में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी सोच रहे थे कि डाक्टर के इंजैक्शन ने अपना काम कर दिखाया है पर जनक रानी जानती थी कि छींकें क्यों और कैसे रुकी हैं।

शिक्षा : संत महापुरुषों की सेवा करके प्रभु से मिलने का रास्ता मांगें। सांसारिक वस्तुएं अपने आप मिल जाएंगी।

 

 

 

 

 

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