Religious Katha: भगवान नारायण लक्ष्मी को साथ लेकर आते हैं ऐसे लोगों से मिलने

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Sep, 2020 07:50 AM

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एक बार महाराष्ट्र में अकाल पड़ा। अन्न के अभाव में लोग भूख-प्यास से मरने लगे। धामण गांव के पटवारी माणकोजी बोधला अकाल पीड़ितों की सेवा में जुट गए। उन्होंने अपने घर तथा खेत के गोदामों में रखा सारा

Religious Katha: एक बार महाराष्ट्र में अकाल पड़ा। अन्न के अभाव में लोग भूख-प्यास से मरने लगे। धामण गांव के पटवारी माणकोजी बोधला अकाल पीड़ितों की सेवा में जुट गए। उन्होंने अपने घर तथा खेत के गोदामों में रखा सारा अनाज अकाल पीड़ितों को बांट डाला। लोग अभी भी भूख से मर रहे थे। पटवारी तथा उनकी पत्नी ने घर के समस्त आभूषण तथा पशु तक बेच कर अकाल पीड़ितों के लिए बाहर से अन्न मंगवा कर बांट दिया।

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जब माणकोजी ने देखा कि अभी भी अकाल पीड़ितों का तांता लगा हुआ है तो उन्होंने कुल्हाड़ी उठाई तथा जंगल में पहुंच गए। लकड़िया काटीं तथा उन्हें बेच कर मिले तीन पैसे में से एक पैसा भगवान को अर्पित किया तथा दो पैसे का आटा मंगवा कर अकाल पीड़ित भूखों की प्रतीक्षा करने लगे।


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लोगों को यह पता चल गया था कि माणकोजी अकाल पीड़ितों की सहायता में अपना सब कुछ गंवा चुके हैं इसलिए उन्हें दीन-हीन मान कर कोई उनके पास मांगने नहीं आया। वह निराश होकर शैया पर लेट गए।

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इस पर भगवान लक्ष्मी-नारायण ने ब्राह्मण-ब्राह्मणी का रूप धारण किया तथा माणकोजी के घर जा पहुंचे। माणकोजी ने उनके सामने पोटली खोल कर आटा रख दिया तथा कहा, ‘‘महाराज, रोटियां बनवा देता हूं, उन्हें प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लेना। घर ले जाने के लिए देने को अब मेरे पास कुछ नहीं बचा है।’’

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देखते ही देखते ब्राह्मण-ब्राह्मणी के स्थान पर लक्ष्मी-नारायण प्रकट हो गए, जो भूख पीड़ितों के प्रति माणकोजी की करुणा भावना से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे।

 

 

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