Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Apr, 2021 11:34 AM
एक बार ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करके तीन असुर-तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली आकाश में विमान के रूप में नगर बसाकर रहने लगे। घमंड में फूलकर ये भयंकर दैत्य तीनों लोकों को कष्ट पहुंचाने लगे। देवराज इंद्रादि उनका
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एक बार ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करके तीन असुर-तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली आकाश में विमान के रूप में नगर बसाकर रहने लगे। घमंड में फूलकर ये भयंकर दैत्य तीनों लोकों को कष्ट पहुंचाने लगे। देवराज इंद्रादि उनका नाश करने में सफल न हो पाए। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने उन तीनों असुरों को भस्म कर दिया। जिस समय दैत्यों के नगरों को महादेव जी भस्म कर रहे थे, उस समय पार्वती जी भी कौतूहलवश देखने के लिए वहां आईं। उनकी गोद में एक बालक था। वे देवताओं से पूछने लगीं, ‘‘पहचानो, यह कौन हैं?’’
इस प्रश्न से इंद्र के हृदय में असूया की आग जल उठी और उन्होंने जैसे ही उस बालक पर वज्र का प्रहार करना चाहा, तत्क्षण उस बालक ने हंस कर उन्हें स्तंभित कर दिया।
उनकी वज्रसहित उठी हुई बांह ज्यों की त्यों रह गई। अब क्या था, बांह उसी तरह ऊपर उठाए हुए इंद्र दौडऩे लगे। अमरावती-विहार करने वाले इंद्र अब महान कष्ट से पीड़ित होकर ब्रह्मा जी की शरण में गए। ब्रह्मा जी को दया आ गई। वे इंद्र को लेकर शंकर जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी शंकर जी को प्रणाम करके बोले, ‘‘भगवन्! आप ही विश्व को सहारा तथा सबको शरण देने वाले हैं। भूत और भविष्य के स्वामी जगदीश्वर! ये इंद्र आपके क्रोध से पीड़ित हैं, इन पर कृपा कीजिए।’’
सर्वात्मा महेश्वर प्रसन्न हो गए। देवताओं पर कृपा करने के लिए वे ठठाकर हंस पड़े। सबने जान लिया कि पार्वती जी की गोद में चराचर जगत के स्वामी भगवान शंकर जी ही थे। वे सभी मनुष्यों का कल्याण चाहते हैं इसलिए उन्हें शिव कहते हैं। वेद, वेदाङ्ग, पुराण तथा आध्यात्मिक शास्त्रों में परम रहस्य है, वह भगवान महेश्वर ही हैं।