Ram Navami 2021: श्री राम ने ‘कौशल्या जी’ की गोद विश्व वंदनीय बना दी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Apr, 2021 11:45 AM

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दक्षिण कोसल राज ने अपनी पुत्री का विवाह अयोध्या के युवराज दशरथ से सुनिश्चित किया। आरंभ से ही कौशल्या जी धार्मिक स्वभाव की थीं। वह निरंतर भगवान जी की पूजा करतीं और नित्य ब्राह्मणों को दान देती थीं। भगवान राम ने माता कौशल्या जी की गोद को विश्व के लिए...

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Religious Katha- दक्षिण कोसल राज ने अपनी पुत्री का विवाह अयोध्या के युवराज दशरथ से सुनिश्चित किया। आरंभ से ही कौशल्या जी धार्मिक स्वभाव की थीं। वह निरंतर भगवान जी की पूजा करतीं और नित्य ब्राह्मणों को दान देती थीं। भगवान राम ने माता कौशल्या जी की गोद को विश्व के लिए वंदनीय बना दिया। भगवान की विश्वमोहिनी मूर्ति के दर्शन से उनके सारे कष्ट परम आनंद में बदल गए।

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‘‘मेरा राम आज युवराज होगा।’’

माता कौशल्या का हृदय यह सोच कर प्रसन्नता से उछल रहा था। उन्होंने पूरी रात भगवान की आराधना में व्यतीत की। प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर वह भगवान की पूजा में लग गईं। पूजा के बाद उन्होंने पुष्पाञ्जलि अर्पित कर भगवान को प्रणाम किया।

उसी समय रघुनाथ ने आकर माता के चरणों में मस्तक झुकाया। कौशल्या जी ने श्री राम को उठाकर हृदय से लगाया और कहा, ‘‘बेटा! कुछ कलेऊ तो कर लो। अभिषेक में अभी बहुत विलम्ब होगा।’’

‘‘मेरा अभिषेक तो हो गया मां! पिता जी ने मुझे चौदह वर्ष के लिए वन का राज्य दिया है।’’ श्री राम ने कहा।

‘‘राम! तुम परिहास तो नहीं कर रहे हो? महाराज तुम्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय मानते हैं। किस अपराध से उन्होंने तुम्हें वन दिया है? मैं तुम्हें आदेश देती हूं कि तुम वन नहीं जाओगे, परंतु यदि इसमें छोटी माता कैकेयी की भी इच्छा सम्मलित है तो वन का राज्य तुम्हारे लिए सैंकड़ों अयोध्या के राज्य से भी बढ़कर है।’’

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माता कौशल्या ने हृदय पर पत्थर रख कर राघवेंद्र को वन जाने का आदेश दिया।

‘‘कौशल्ये! मैं तुम्हारा अपराधी हूं, अपने पति को क्षमा कर दो।’’

महाराज दशरथ ने करुणा स्वर में कहा। ‘‘मेरे देव मुझे क्षमा करें।’’

पति के दीन वचन सुन कर कौशल्या जी उनके चरणों में गिर पड़ीं और बोलीं, ‘‘स्वामी दीनतापूर्वक जिस स्त्री की प्रार्थना करता है, उस स्त्री के धर्म का नाश होता है। पति ही स्त्री के लिए लोक और परलोक का एकमात्र स्वामी है।’’

इस तरह कौशल्या जी ने महाराज को अनेक प्रकार से सांत्वना दी। श्री राम के वियोग में महाराज दशरथ के शरीर त्याग के बाद माता कौशल्या सती होना चाहती थीं, परन्तु श्री भरत के स्नेह ने उन्हें रोक दिया। चौदह वर्ष के समय का एक-एक पल युग की भांति बीता। श्री राम आए। आज भी वह मां के लिए शिशु ही तो थे।

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