मासिक शिवरात्रि: शिव जी के गले का आभूषण इस तरह बने नाग, पढ़ें, कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Apr, 2020 05:49 AM

religious katha of lord shiv and naag

आज मासिक शिवरात्रि के शुभ अवसर पर हम आपको एक कथा बताने जा रहे हैं। जिसे कम ही लोग जानते होंगे, तो आइए जानें शिव जी के गले का आभूषण कैसे बने नाग- देवों में महादेव शिव को नाग-जाति परम प्रिय है।

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 Masik Shivaratri: आज मासिक शिवरात्रि के शुभ अवसर पर हम आपको एक कथा बताने जा रहे हैं। जिसे कम ही लोग जानते होंगे, तो आइए जानें  शिव जी के गले का आभूषण कैसे बने नाग- देवों में महादेव शिव को नाग-जाति परम प्रिय है। यहां तक कि नागों के बगैर शिव के भौतिक तन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। शिव ने नागों को अपना कर वह गौरव प्रदान किया, जो किसी दूसरे को प्राप्त नहीं हुआ। वैसे शिव की शरण में जो भी पहुंचा, शिव ने उसे अपने ललाट पर बैठाया, चाहे वह चंद्रमा हो या गंगा, किन्तु नागों से अपना संपूर्ण शरीर ही मंडित कर लिया, जिसके कारण नाग-जाति शिव के साथ पूजनीय बन गई।

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वैसे तो शिव से संबंधित अनेकानेक कथानक हैं किन्तु नागों के साथ जुड़ा एक रोचक प्रसंग इस प्रकार है :
बहुत पहले की बात है। गांव में एक नदी थी। नदी के रास्ते पर एक विषैला नाग रहता था जो अक्सर अनेक व्यक्तियों को काट लिया करता था। नाग के आतंक से बचाव के लिए व्यक्ति समूह में नदी पर नहाने जाया करते थे परंतु वह फिर भी तरकीब से एक-दो को अपना शिकार बना ही लेता था। एक दिन कोई महात्मा नदी की ओर जा रहे थे। रास्ते में वही नाग मिला। वह महात्मा को डसने वाला ही था कि अकस्मात रुक गया। महात्मा हंसते हुए बोले, ‘‘तुम मुझे काट कर आगे क्यों नहीं बढ़ते?’’ किन्तु वह महात्मा के चरणों में बारी-बारी से नमन करने लगा।

यह देखकर महात्मा ने कहा, ‘‘नागराज! पूर्वजन्म के किसी पाप के कारण ही तुम्हें यह योनि मिली है, किन्तु तुम इस योनि में भी प्राणियों को काटोगे, तो तुम्हें नरक में जगह मिलेगी। यदि तुम नरक से छुटकारा पाना चाहते हो तो आज से किसी भी प्राणी को काटना छोड़ दो।’’

अब नाग ने महात्मा के सान्निध्य में अहिंसा का व्रत ले लिया। जब उसने काटना छोड़ दिया तो व्यक्ति उसे छेड़ने लगे। कुछ व्यक्ति उसे कंकड़-पत्थरों से मारा करते, इस वजह से उसके बदन पर जगह-जगह घाव हो गए।

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कुछ दिनों पश्चात् वही महात्मा दोबारा नदी के रास्ते जा रहे थे तो उन्हें वही नाग मिला। उसकी कमजोर हालत देख कर मुनि ने कारण जानना चाहा तो नाग ने कहा, ‘‘लोग मुझे पत्थर मारते हैं।’’

इस पर महात्मा ने कहा, ‘‘नागराज! मैंने तुमसे किसी को न काटने के लिए कहा था लेकिन ऐसा तो नहीं कहा था कि यदि कोई तुम्हें परेशान करे तो उसकी तरफ गुस्सा भी मत करो। हां, आज से तुम्हें जो भी परेशान करे, उसकी तरफ तुम फुफकार मारकर दौड़ा करो। ऐसा करने से तुम्हें परेशान करने वाले भय के मारे दूर भागने लगेंगे।’

अब नाग के नजदीक जो भी आता, यदि छेड़छाड़ करता, तो वह गुस्से में जोर से फुफकारते हुए झपटने का नाटक करता, जैसे इसी वक्त काट लेगा। नाग के स्वभाव में आए इस बदलाव को देखकर सब व्यक्ति सतर्क हो गए एवं डरने लगे। अब कोई भी उसे छेड़ने की कोशिश नहीं करता। एक बार वही महात्मा दोबारा नाग के नजदीक आए और कहा, ‘‘मैं तुमसे बहुत खुश हूं। बोलो क्या चाहते हो?’’

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नाग ने उत्तर दिया, ‘‘मैं सदैव आपके नजदीक रहूं, बस यही मेरी अभिलाषा है।’’ वह महात्मा और कोई नहीं थे, बल्कि भगवान शंकर थे। अपने सामने साक्षात् भगवान शंकर को देख कर नाग बड़ा खुश हुआ तथा रेंगता हुआ उनके बदन पर चढ़कर गले में लिपट गया। बस, तभी से नाग शंकर के गले का आभूषण बन गया।  

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