ऐसा वृक्ष जो सुनता है मन की बात, पूरी करता है हर इच्छा

Edited By ,Updated: 20 Dec, 2016 03:25 PM

religious narrative

एक आदमी खुले मैदान में अकेला चला जा रहा था। चलते-चलते वह बहुत थक चुका था, लिहाजा उसने थोड़ी देर विश्राम करने की सोची। उसे कुछ दूरी पर एक हरा-भरा वृक्ष नजर आया तो वह उसी ओर

एक आदमी खुले मैदान में अकेला चला जा रहा था। चलते-चलते वह बहुत थक चुका था, लिहाजा उसने थोड़ी देर विश्राम करने की सोची। उसे कुछ दूरी पर एक हरा-भरा वृक्ष नजर आया तो वह उसी ओर चल पड़ा। वृक्ष काफी सघन था और उसमें रंग-बिरंगे सुंदर फूल लगे थे। यह देखकर पथिक आनंद से भर उठा। हालांकि वह नहीं जानता था कि यह एक कल्पतरु है, जिसके नीचे बैठकर यदि कोई संकल्प मन में आए तो वह तुरंत पूरा हो जाता है। वह उसी वृक्ष की छाया में बैठ गया। 


बैठे-बैठे उसके मन में ख्याल आया कि यदि मेरे पास बढिय़ा-सा बिस्तर होता तो उसे बिछाकर मैं आराम से सो जाता और थकान मिट जाती। यह सोचना था कि वहां एक सुंदर बिछौना आ गया। आश्चर्यचकित पथिक ने उसे बिछाया और लेटकर विश्राम करने लगा। उसका मन अभी भी ख्यालों में खोया हुआ था। 


वह सोचने लगा कि काश यहां पर कोई स्त्री भी होती जो मेरे पैर दबाती और मैं सुखपूर्वक इस बिस्तर पर सो जाता। यह संकल्प मन में आते ही वहां एक सुंदर युवती उपस्थित हुई और बोली, ‘‘मैं आपकी खिदमत में हाजिर हूं। बताइए क्या सेवा करूं?’’ 


पथिक ने डरते-डरते अपने मन की इच्छा जाहिर कर दी। इसके बाद वह युवती उसके पैर दबाने लगी। वह सुबह से अपने घर से निकला था और अब शाम हो चली थी। उसे भूख भी लग रही थी। वह सोचने लगा, ‘‘काश, कहीं से स्वादिष्ट भोजन भी मिल जाए तो मेरे पेट की आग शांत हो सके।’’ 


इतना सोचते ही वहां नाना प्रकार के व्यंजनों से सजा थाल उसके सामने आ गया। उसने छककर भोजन किया और पुन: बिस्तर पर लेट गया। सहसा उसके मन में ख्याल आया, ‘‘जबसे इस पेड़ के नीचे आसरा लिया है, सब कुछ अजीब हो रहा है। ऐसा न हो कि कहीं से बाघ आ जाए और मुझे खा जाए।’’ 


वह सोच ही रहा था कि वहां एक बाघ आ पहुंचा। यह देख यात्री की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। बाघ उस पर झपटा और उसका काम तमाम कर दिया। 


कथा का सार यह है कि मनुष्य मन की कामनाओं का कोई अंत नहीं। इन कामनाओं की पूर्ति के साथ मन में कई बार रोग, शोक, ताप, मृत्यु इत्यादि का भय भी बना रहता है। जीवन में मोक्ष प्राप्ति का उपाय यही है कि अपने मन को भगवतभक्ति में लीन करते हुए धीरे-धीरे इन कामनाओं का त्याग कर दिया जाए।

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