मानो या न मानो: मरने के बाद भी भारत की रक्षा करता है ये फौजी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Jun, 2018 11:04 AM

इतनी बड़ी दुनिया में कुछ घटनाएं ऐसी घट जातीं हैं, जिन पर विश्वास करना थोड़ा कठिन हो जाता है परंतु जब यह घटनाएं सच्ची निकलती हैं तो हर कोई सोचने पर मज़बूर हो जाता है। एेसा ही कुछ कपूरथला के शहीद की कहानी में हैं जो सच्ची तो है पर उस पर विश्वास करना...

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इतनी बड़ी दुनिया में कुछ घटनाएं ऐसी घट जातीं हैं, जिन पर विश्वास करना थोड़ा कठिन हो जाता है परंतु जब यह घटनाएं सच्ची निकलती हैं तो हर कोई सोचने पर मज़बूर हो जाता है। एेसा ही कुछ कपूरथला के शहीद की कहानी में हैं जो सच्ची तो है पर उस पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है। जानकारी के मुताबिक एक फौजी शहीद होने के बाद भी सरहदों की रख़वाली करता है और उसे इस की बाकायदा तनख़्वाह और छुट्टियां भी दीं जातीं रही हैं।

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दरअसल कपूरथला में 3 अगस्त, 1941 को जन्म लेने वाले शहीद कैप्टन हरभजन सिंह ने 1966 में 23वीं पंजाब बटालियन ज्वाइन की थी। 1968 में सिक्किम की सरहद से हरभजन सिंह घोड़े पर सवार हो कर मुख्य दफ्तर जा रहे थे कि एक झरने में गिर गए। फौज ने हरभजन को ढूंढने के 5 दिनों बाद लापता घोषित कर दिया। फिर कुछ ऐसा हुआ कि सारे फौजी भी हैरान रह गए। हरभजन ने एक फौजी के सपने में आ कर अपने शव के बारे में जानकारी दी और अगले दिन उसी स्थान पर सैनिकों ने उनका शव बरामद किया। दूसरे दिन राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया।

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हरभजन के अंतिम संस्कार के बाद फौजियों के साथ कुछ ऐसीं घटनाएं घटने लगी , जिस कारण सभी सैनिकों की हरभजन सिंह के प्रति श्रद्धा बढ़ गई और उन्होंने हरभजन के बंकर को एक मंदिर का रूप दे दिया। ऐसी मान्यता है कि यह शहीद आज भी सरहद पर तैनात फौजियों को दिखाई देता है और अपना संदेश पहुंचाने के लिए फौजियों के सपने में आ कर अपनी इच्छा बताते हैं। 

भारत-चीन सरहद पर तैनात कई फौजी इस बात की पुष्टि कर चुके हैं। सिर्फ यह ही नहीं चीन के सिपाहियों ने भी इस फौजी को अपनी आंखों के साथ घोड़े पर गश्त करते हुए देखा है। 

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किसी को विश्वास हो या न हो परंतु देश का यह शहीद पिछले 3 दशकों से सरहद की रख़वाली कर रहा है और यही कारण है कि अब लोग उन को कैप्टन बाबा हरभजन सिंह के नाम के साथ पुकारते हैं और उन के बंकर पर बने मंदिर में अपनी मुरादें ले कर जाते हैं। कुछ साल पहले तक तो इस शहीद को दो महीने की छुट्टी और तनख़्वाह भी दी जाती थी।

गांव जाने के लिए इस शहीद के लिए ए. सी. फर्स्ट क्लास में बुकिंग करवाई जाती थी और दो फौजी उन को गांव तक छोड़ कर आते थे। हरभजन की छुट्टी के दौरान यह मान कर चीन सरहद पर चौकसी बड़ा दी जाती थी कि बाबा उन की मदद के लिए यहां मौजूद नहीं हैं परंतु फिर बाबा की छुट्टी के समय पर लोगों की तरफ से किसी धार्मिक समागम जैसा आयोजन किया जाने लग पड़ा, जिस कारण बाबा की छुट्टी बंद कर दी गई और अब वह 12 महीने ड्यूटी पर ही रहते हैं।

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मंदिर में बाबा का एक कमरा बनाया गया है, जहां हर रोज़ सफाई होती है और उन की वर्दी और जूत्ते रखे जाते हैं। कहते हैं कि हर रोज़ सफाई करने के बावजूद जूतों में कीचड़ लगा देखा जाता है और चादर पर भी सिलवटें होती हैं। बाबा हरभजन सिंह का मंदिर फौजियों और लोगों दोनों के लिए आस्था का केंद्र बन चुका है और इलाके में आने वाला हर नया फौजी पहले इस मंदिर में माथा टेकता है। ऐसा भी माना जाता है कि बाबा के बंकर में कापियां रखी हैं, जिन पर लोग जो भी मुरादों लिख़ते हैं, वह पूरी हो जाती हैं।

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