Edited By Jyoti,Updated: 03 May, 2018 08:21 AM
उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगर गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर स्थापित है। यह मंदिर पूरे नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर का नाम इस ही ज़िले के नाम गोरखपुर से पड़ा था।
उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगर गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर स्थापित है। यह मंदिर पूरे नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर का नाम इस ही ज़िले के नाम गोरखपुर से पड़ा था। चूंकि यह मंदिर नाथ संप्रदाय का प्रधान मंदिर रहा है और इस ने समाज को कई महंत दिए हैं। जब से इस मंदिर के महंत यूपी के सीएम श्री बाबा आदित्यनाथ योगी बने हैं, तब से इस मंदिर की ख्याति विश्वभर में और भी अधिक फैल गई है। मकर संक्राति को यहां विशाल मेला लगता है, जो 'खिचड़ी मेले' के नाम से प्रसिद्ध है।
गोरखनाथ मंदिर नाथ परंपरा में नाथ मठ समूह का एक देवालय है। इस मंदिर का नाम संत गोरखनाथ से निकला है जो एक प्रसिद्ध योगी थे। नाथ परंपरा गुरू मच्छेंद्र नाथ द्वारा स्थापित की गई थी तथा मंदिर की स्थापना उसी जगह पर की गई जहां वह तपस्या करते थे। गुरु गोरखनाथ ने अपनी तपस्या का ज्ञान मत्स्येंद्रनाथ से लिया था, जो नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक थे। अपने शिष्य गोरखनाथ के साथ मिलकर, गुरु मच्छेंद्र नाथ ने योग स्कूल भी स्थापित किए थे।
15 फरवरी 1994 गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्य नाथ जी महाराज के द्वारा मांगलिक वैदिक मंत्रोच्चारपूर्वक के साथ योगी आदित्यनाथ का दीक्षाभिषेक हुआ। तब से लेकर अब तक ये गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं।
गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में लगातार होने वाली योग साधना का क्रम पुराने समय से चलता आ रहा है। ज्वालादेवी के स्थान से परिक्रमा करते हुए 'गोरक्षनाथ जी' ने आकर भगवती राप्ती के तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी और इसी स्थान पर अपनी दिव्य समाधि लगाई थी, जहां आज के समय में गोरखनाथ मंदिर स्थापित है। यह मंदिर करीब 52 एकड़ क्षेत्र में बना हुआ है। इस मंदिर के रूप व आकार में परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर तब्दीली की जाती है।
अन्य सांस्कृतिक व धार्मिक स्थलों की तरह इस मंदिर को भी कई बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसकी प्रसिद्धि की वजह से शत्रुओं का ध्यान इसकी तरफ आकर्षित होता गया। चौदहवीं सदी में भारत के मुस्लिम सम्राट अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में यह मठ नष्ट किया गया और साधक योगी को विवशतापूर्वक निष्कासित कर दिया गया। मठ के पुनर्निर्माण के बाद सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में मुगल शासक औरंगजेब ने भी इसे दो बार नष्ट किया लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार शिव गोरक्ष्ष द्वारा त्रेता युग में प्रज्वलित की गई अखंड ज्योति आज तक अखंड रूप से जल रही है।