Kundli Tv- 300 सुशिक्षित संतों की प्रशिक्षण स्थली सारंगपुर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Jun, 2018 05:37 PM

religious place of 300 educated saints in sarangpur

अत्यंत रमणीय वातावरण में असंख्य पेड़ों की छाया तले, सुरक्षित दायरे में विचरण करने वाले सारंगों (मोरों) की धरती सारंगपुर गांव अहमदाबाद से लगभग 140 किलोमीटर दूर गुजरात के जिला बोटाद की तहसील बरवाला में स्थित है। इस गांव को रेल सम्पर्क उपलब्ध नहीं है

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अत्यंत रमणीय वातावरण में असंख्य पेड़ों की छाया तले, सुरक्षित दायरे में विचरण करने वाले सारंगों (मोरों) की धरती सारंगपुर गांव अहमदाबाद से लगभग 140 किलोमीटर दूर गुजरात के जिला बोटाद की तहसील बरवाला में स्थित है। इस गांव को रेल सम्पर्क उपलब्ध नहीं है लेकिन ऊबड़-खाबड़ सड़क की चौड़ाई दोगुणी करके बजरी से कारपेटिंग कर दी गई है।

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सारंगपुर विगत वर्ष पूरे विश्व में चर्चा का विषय बना, जब प्रमुख स्वामी जी महाराज की अंत्येष्टि के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित देश-विदेश से अनेक राजनेता, धर्मगुरु एवं शीर्षस्थ व्यवसायी यहां श्री स्वामी नारायण मंदिर परिसर में पधारे।

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प्रमुख स्वामी जी उन साधुओं में शामिल थे जिन्होंने मंदिर निर्माण के समय सिर पर चूना व राखी उठाने के अलावा इनका मिश्रण तैयार करते समय उभरे फफोलों की पीड़ा सही। अपने गुरु शास्त्री जी महाराज के आदेशानुसार उन्होंने यहां कोठारी का दायित्व भी संभाला। शास्त्री जी की स्मृति में मंदिर निर्माण किया। अंतिम श्वास भी अपने संकल्प के अनुसार यहीं लिया।


उनके समाधि स्थल पर निर्माण योजना को अब अंतिम रूप दिया जा रहा है। जिस कुटिया में प्रमुख स्वामी जी निवास करते थे और जहां से सुबह-शाम दर्शन दिया करते थे, उन्हें प्रसादिक संग्रहालय का रूप दिया गया है। इस परिसर में स्थित मंदिर की घंटियां प्रात: 6 बजे से रात्रि 8 बजे के बीच चार बार गूंजती हैं।

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जब यहां होली के अवसर पर फूल दोलोत्सव और परम्परागत जल झूलनी (नौका विहार) उत्सव आयोजित किए जाते हैं तो औसतन एक लाख लोग दुनिया भर से पहुंच जाते हैं। तब महिला मंडल व युवकों के प्रबंधन कौशल्य का कमाल दिखाई देता है। सभी के लिए शुद्ध जल व गर्मागर्म भोजन, प्रसाद की व्यवस्था रहती है। हजारों की संख्या में आने वाले वाहनों की पार्किंग में कभी विघ्न नहीं पड़ा।


रिमोट चलित पिचकारियों का पीला रंग सभी को आनंदित कर देता है। परिसर के बाहर भी तिल धरने को जगह नहीं होती लेकिन भगवान स्वामीनारायण की कृपा से प्रत्येक उत्सव निर्विघ्न सम्पन्न हो जाता है।


दशकों पूर्व जिस स्थान पर अक्षर मंदिर का निर्माण हुआ वह अब विशाल उपवन का रूप धारण कर चुका है।
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