क्या आपने सुना है इस मंदिर के बारे में जो पेड़ों पर बना है

Edited By Jyoti,Updated: 24 Dec, 2018 03:55 PM

religious place of jagrameshwar temple

भारत देश एक ऐसा देश है, जो अपने चमत्कारों के लिए विश्वभर में जाना जाता हैं। अगर बात करे यहां स्थापित मंदिरों की तो इनके रहस्य और चमत्कार की वो तो इतने अद्भुत हैं कि बड़े से बड़े वैज्ञानिकों ने भी इनके सामने घुटने टेक दिए हैं।

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भारत देश एक ऐसा देश है, जो अपने चमत्कारों के लिए विश्वभर में जाना जाता हैं। अगर बात करे यहां स्थापित मंदिरों की तो इनके रहस्य और चमत्कार की वो तो इतने अद्भुत हैं कि बड़े से बड़े वैज्ञानिकों ने भी इनके सामने घुटने टेक दिए हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो इस बात का सटीक उदाहरण हैं। हम बात कर रहे हैं कि राजस्थान के जोधपुर जिले के निमाजगढ़ कस्बे में स्थित जगरामेश्वर मंदिर के बारे में। ये मंदिर यहां के लोगों की आस्था का केंद्र है।
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आपको बता दें कि ये अद्भुत मंदिर बड़ और पीपल के पेड़ पर बना है। शायद आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन जी हां बड़ और पीपल के पेड़ पर बना ये मंदिर करीब 300 साल पुराना है। लोग यहां शिव जी पूजा-अर्चना और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं।

कहा जाता है कि दक्षिण भारतीय शैली से बना ये मंदिर श्रृद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां वैसे तो रोज़ाना ही भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शिवरात्रि और सावन माह में तो इस अद्भुत मंदिर में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। पीपल और बड़ का ये अजब संजोग ही है जो ये पुरातन मंदिर बड़ और पीपल की जड़ों पर स्थित है। इस मंदिर से जुड़ी सबसे खास बात ये है कि यहां बड़ और पीपल का होना भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है।
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बड़ और पीपल के पेड़ के तने से बने हुए इस मंदिर के निर्माण को लेकर एक कथा प्रचलित है। जो इस प्रकार है कि यहां एक पुजारी तपस्या में लीन थे। इसी दौरान उन्हें ऊपर से एक मंदिर गुज़रने का आभास हुआ। पुजारी ने अपनी तपस्या की शक्ति के दम पर मंदिर को वहीं उतार लिया और जगराम दुर्ग की पोळ के पास स्थापित किया। ऐसा कहा जाता है कि ये मंदिर पेड़ पर ही उतरा गया था।
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जिसके बाद सन 1765 में इस मंदिर में महादेव की मूर्ति स्थापित कर इसका नाम जगरामेश्वर रखा गया, इसके साथ ही मंदिर में शिव परिवार की भी स्थापना की गई। बता दें कि मंदिर करीब 20 से 25 फीट की ऊंचाई पर है। इसके अंदर जाने के लिए सीढियां का इस्तेमाल होता है। पूरे मंदिर का निर्माण दोनों पेड़ों के तने पर किया हुआ है और मंदिर चारों ओर से पेड़ों की शाखाओं से लिपटा हुआ है।
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