Religious Stories: पढ़े, धार्मिक व शिक्षाप्रद कथाएं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Oct, 2020 11:00 AM

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एक बार एक संन्यासी ने स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता से वेदांत प्रचार की प्रणाली के विषय में पूछा। भगिनी निवेदिता ने एक क्षण सोचा, फिर उनसे एक चाकू देने की प्रार्थना की।

Religious Stories: एक बार एक संन्यासी ने स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता से वेदांत प्रचार की प्रणाली के विषय में पूछा। भगिनी निवेदिता ने एक क्षण सोचा, फिर उनसे एक चाकू देने की प्रार्थना की।

चाकू संन्यासी के पास पड़ा हुआ था। उसने चाकू की धार वाला भाग स्वयं पकड़ा और मूठ की ओर से भगिनी निवेदिता की ओर बढ़ा दिया।

‘‘हां बिल्कुल ठीक’’ भगिनी निवेदिता ने कहा, ‘‘विदेशों में कार्य करने की यही उचित शैली है। संकट के साथ स्वयं रहो और सुरक्षित भाग दूसरों के लिए छोड़ दो।‘‘

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सुख की कुंजी
सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा, ‘‘जंगल में रह कर तुम सुखी कैसे रह सकती हो, हम तो द्वारिका में भी सुखी नहीं हैं। सुख की कुंजी क्या है, वह हमें भी बता दो।

द्रौपदी ने कहा, ‘‘दुखेन साध्वी लभते सुखानि।’’

अर्थात दुख से ही सुख हासिल हो सकता है। जो दूसरों के लिए तकलीफ उठाने को तैयार हैं वे ही सुखी हो सकते हैं। सुख से सुख प्राप्त नहीं हो सकता। सुख चाहती हो तो दूसरों को सुखी बनाने की कोशिश करो। अपने भूखे पड़ोसी की परवाह किए बगैर हम सुखी नहीं हो सकते। दूसरों को लूट कर हम सुखी नहीं हो सकते। हम दूसरों की चिंता करेंगे तो वे भी हमारी चिंता करेंगे।

जैसा बीज बोएंगे, वैसा ही फल पाएंगे।

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विचार की बैलगाड़ियां
एक साधक ध्यान कर रहा था। उसने शिष्य से कहा, ‘‘पानी पीना है, नदी का पानी ले आओ।’’

शिष्य खाली हाथ लौटा और पूछने पर बोला, ‘‘पानी गंदला हो गया है क्योंकि अभी-अभी नदी में से अनेक बैलगाड़ियां गुजरी हैं। साधक ने उसे बार-बार जाने को कहा, ‘‘दो तीन बार नदी पार गया परंतु पानी अभी गंदला ही था। मिट्टी अभी तक तल में जमी नहीं थी। चौथी बार गया और इस बार स्वच्छ पानी से लोटा भर लाया। गुरु ने कहा कुछ समझे या नहीं?’’

शिष्य बोला, ‘‘समझने जैसा इसमें था ही क्या। बैलगाड़ियां निकलीं, इससे पानी गंदला हो गया। मिट्टी जमते-जमते अब पानी साफ और स्वच्छ हो गया। इसमें रहस्य जैसी कोई बात तो थी ही नहीं।

गुरु ने कहा, ‘‘यही समझना है कि जब विचारों की बैलगाड़ियां दिमाग से गुजरती हैं, तब चेतना गंदली बन जाती है अब ये विचार की बैलगाड़ियां गुजर जाती हैं, जब चेतना शांत हो जाती है वह स्वच्छ हो जाती है।’’

 

 

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