Edited By Jyoti,Updated: 25 Sep, 2018 04:25 PM
पौराणिक काल में एख बहुत प्रसिद्ध ऋषि हुआ करते थे, जिनका नाम था महर्षि भृगु। आज के समय में इनका प्रसिद्ध ग्रंथ भृगु संहिता आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना प्राचीन समय में था।
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पौराणिक काल में प्रसिद्ध ऋषि हुआ करते थे, जिनका नाम था महर्षि भृगु। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ भृगु संहिता उतना ही प्रासंगिक है, जितना प्राचीन समय में था। ज्यादातर लोगों ने सुना होगा कि महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु को लात मारी थी। लेकिन इसके पीछे की असली वजह किसी को पता नहीं होगी। तो आइए आज हम आपको बताते हैं इसके पीछे का असली कारण।प्राचीन समय की बात है एक राक्षस समुद्र तल में जा छुपा था तो भगवान शिव के कहने पर भृगु ऋषि ने पूरा सागर ही गटक लिया। लेकिन ऋषि ने ऐसा काम भला क्यों किया?
कहा जाता है कि महर्षि भृगु उस समय के श्रेष्ठ ऋषि थे भृगु फिर भी उनके ऐसा करने पर ज़रूर कुछ न कुछ कारण रहा होगा। आप भी यही सोच रहे होंगे तो आइए आपको बताते हैं, कि आखिर ऋषि ने एेसा क्यों किया था।
एक बार धरती पर सरस्वती नदी के तीर पर ऋषियों का सत्संग हुआ, सारे ऋषि धर्म चर्चा भी करने लगे। ऐसे में एक चर्चा ये हुई की तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से श्रेष्ठ कौन है?
इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे सका तब ऋषि श्रेष्ठ भृगु को ये चुनौती पूर्ण कार्य सौंपा गया कि आप ही इस बात का पता लगाएं। सबसे पहले गए ऋषि भृगु अपने पिता ब्रह्मा के पास गए, चूंकि वे ब्रह्मा के मानस पुत्र थे इसलिए उन्होंने उनकी परीक्षा के लिए मानस उपाय सोचा। भृगु ने अपने पिता के पास जाकर उनका कोई आदर सत्कार न किया। जिस पर ब्रह्मा जी तिलमिला उठे, वो उन्हें श्राप देने ही वाले थे की उन्हें याद आया कि ये तो उनका ही पुत्र है और अपने क्रोध को पी गए। हालांकि क्रोध भृगु से छिप न सका फिर ब्रह्मा जी से आज्ञा ली और वहां से चले गए।
इसके बाद वे भगवान शिव के पास गए, उन्हें देख शिव खुद अपने स्थान से उठे और भृगु को आदर देने लगे। इस पर भृगु ने शिव को अपमानित करते हुए कहा कि आप रहने दो महादेव मुझे न छुएं। आप की वेषभूशा गन्दी है और आप पता नहीं नहाते भी है या नहीं। इसपर महादेव ने त्रिशूल उठा लिया पर इसी मौके पर माता पार्वती ने आकर उन्हें रोक लिया और ब्रह्मा जी के पुत्र होने के नाते प्राण दान की विनती की।
आखिर में भृगु वैकुण्ठ पहुंचे जहां विष्णु जी शेष शैय्या पे थे और लक्ष्मी देवी उनके पैर दबा रही थी, उस स्थिति में भृगु आगे बढे और अपने पैर से विष्णु के छाती में प्रहार किया। जिस पर विष्णु जी उठे और बजाए गुस्सा होने के उन्होंने भृगु से कहा कि क्षमा करे ऋषिवर में आप को देख न पाया, कहीं आप के पैर में चोट तो नहीं लगी?
अब हम अपने मुंह से क्या बोले आप खुद निर्णय कर सकते हैं कि कौन सर्वश्रेष्ठ है, इस घटना के बाद में भृगु ने तीनों देवों से माफ़ी मांगी और इस संबंध से जुड़ा पूरा वृतांत बताया।
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