Kundli Tv- ये क्या बेटे के साथ-साथ पापा ने भी दुनिया को बोला BYE-BYE

Edited By Jyoti,Updated: 23 Sep, 2018 09:29 AM

religious story about mahabharata

महाभारत के सभी पात्रों को अधिकतर लोग जानते ही हैं। लेकिन आज भी एेसे बहुत से लोग जो महाभारत से संबंध रखने वाले पात्रों से अवगत नहीं है।

ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें Video)
महाभारत के सभी पात्रों को अधिकतर लोग जानते ही हैं। लेकिन आज भी एेसे बहुत से लोग जो महाभारत से संबंध रखने वाले पात्रों से अवगत नहीं है। तो आइए आज हम आपको एक एेसे पात्र के बार में बताते हैं जिसका पिता के प्यार की मिसाल आज भी जाती है।
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हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रथों के अनुसार जयद्रथ सिंधु प्रदेश के राजा थे। इनका विवाह कौरवों की एकमात्र बहन दुःशला से हुआ था। जयद्रथ सिंधु नरेश वृद्धक्षत्र के पुत्र थे।  महाभारत के अनुसार, जब पांडव 12 वर्ष के वनवास पर थे, तब एक दिन राजा जयद्रथ उसी जंगल में गुजरा, जहां पांडव रह रहे थे। उस समय आश्रम में द्रौपदी को अकेला देख जयद्रथ ने उसका हरण कर लिया। जब पांडवों को यह बात पता चली तो उन्होंने पीछा कर जयद्रथ को पकड़ लिया।

भीम जयद्रथ का वध करना चाहते थे, लेकिन कौरवों की बहन दु:शला का पति होने के कारण अर्जुन ने उन्हें रोक दिया। गुस्से में आकर भीम ने जयद्रथ के बाल मूंडकर पांच चोटियां रख दी। जयद्रथ की ऐसी हालत देखकर युधिष्ठिर को उस पर दया आ गई और उन्होंने जयद्रथ को मुक्त कर दिया।

जयद्रथ ने लिया था महादेव से वरदान
पांडवों से पराजित होकर जयद्रथ अपने राज्य नहीं गया। अपने अपमान का बदला लेने के लिए वह हरिद्वार जाकर भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या करने लगा। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा। जयद्रथ ने भगवान शिव से युद्ध में पांडवों को जीतने का वरदान मांगा।

तब भगवान शिव ने जयद्रथ से कहा कि- पांडवों से जीतना या उन्हें मारना किसी के भी बस में नहीं है। लेकिन युद्ध में केवल एक दिन तुम अर्जुन को छोड़ शेष चार पांडवों को युद्ध में पीछे हटा सकते हो। क्योंकि अर्जुन स्वयं भगवान नर का अवतार हैं इसलिए उस पर तुम्हारा वश नहीं चलेगा। ऐसा कहकर भगवान शंकर अंतर्धान हो गए और जयद्रथ अपने राज्य में लौट गया।
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अभिमन्यु की मृत्यु का कारण था जयद्रथ 
महाभारत युद्ध में जब गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए चक्रव्यूह बनाया तो उसके मुख्य द्वार पर जयद्रथ को नियुक्त किया। योजना के अनुसार, संशप्तक योद्धा अर्जुन को युद्ध के लिए दूर ले गए। जब युधिष्ठिर ने देखा कि चक्रव्यूह के कारण उनके सैनिक मारे जा रहे हैं तो उन्होंने अभिमन्यु से इस व्यूह को तोड़ने के लिए कहा। अभिमन्यु ने कहा कि, मुझे इस व्यूह में प्रवेश करना तो आता है, लेकिन इससे बाहर निकलने का उपाय मुझे नहीं पता।

तब युधिष्ठिर व भीम ने अभिमन्यु को विश्वास दिलाया कि तुम जिस स्थान से व्यूह भंग करोगे, हम भी उसी स्थान से व्यूह में प्रवेश कर जाएंगे और व्यूह का विध्वंस कर देंगे। युधिष्ठिर व भीम की बात मानकर अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदकर उस में प्रवेश कर गया, लेकिन महादेव के वरदान से युधिष्ठिर, भीम, नकुल व सहदेव आदि वीरों को जयद्रथ ने बाहर ही रोक दिया। चक्रव्यूह में फंसकर अभिमन्यु की मृत्यु हो गई।

श्रीकृष्ण की माया 
अर्जुन को जब पता चला कि अभिमन्यु की मृत्यु का कारण जयद्रथ है तो उन्होंने प्रतिज्ञा की कि, कल निश्चय ही मैं जयद्रथ का वध कर डालूंगा या स्वयं अग्नि समाधि ले लूंगा। जयद्रथ की रक्षा के लिए गुरु द्रोणाचार्य ने अगले दिन चक्र शकटव्यूह की रचना की। शाम तक युद्ध करने के बाद भी अर्जुन जयद्रथ तक नहीं पहुंच पाया क्योंकि उसकी रक्षा कर्ण, अश्वत्थामा, भूरिश्रवा, शल्य आदि महारथी कर रहे थे।
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जब भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि सूर्य अस्त होने वाला है तब उन्होंने अपनी माया से सूर्य को ढ़कने के लिए अंधकार उत्पन्न कर दिया। सभी को लगा कि सूर्य अस्त हो गया है। यह देखकर जयद्रथ व उसके रक्षक असावधान हो गए। जयद्रथ स्वयं अर्जुन के सामने आ गया और उससे अग्नि समाधि लेने के लिए कहने लगा। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुरंत जयद्रथ का वध कर दो।

इसलिए फटा जयद्रथ के पिता का मस्तक
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एक गुप्त बात बताई कि जयद्रथ के पिता वृद्धक्षत्र ने उसे वरदान दिया है कि जो भी वीर इसका सिर पृथ्वी पर गिराएगा, उसके मस्तक के भी सौ टुकड़े हो जाएंगे। इसलिए तुम इस प्रकार बाण चलाओ कि जयद्रथ का मस्तक कट कर उसके पिता की गोद में गिरे। वे इस समय समंतकपंचक क्षेत्र में तपस्या कर रहे हैं।
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अर्जुन ने अमोघ तीर चलाकर जयद्रथ का मस्तक काट दिया, यह मस्तक सीधे वृद्धक्षत्र की गोद में जाकर गिरा। जैसे ही उन्होंने जयद्रथ का मस्तक पृथ्वी पर गिराया, उनके मस्तक के सौ टुकड़े हो गए। इस प्रकार अर्जुन ने जब जयद्रथ का वध कर दिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से उत्पन्न अंधकर दूर कर दिया।
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