Kundli Tv- क्या आप जानते हैं वैष्णो देवी मंदिर के पीछे की असल सच्चाई

Edited By Jyoti,Updated: 17 Jun, 2018 03:12 PM

religious story about vaishno devi in hindi

जम्मू से आगे कटरा नगर की पहाड़ियों के बीचों बीच बसा की वैष्णो देवी धाम शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है। हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं। ज्यादातर लोग इस धार्मिक स्थल के बारे में जानते होंगे।

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जम्मू से आगे कटरा नगर की पहाड़ियों के बीचों बीच बसा की वैष्णो देवी धाम शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है। हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं। ज्यादातर लोग इस धार्मिक स्थल के बारे में जानते होंगे। लेकिन आज हम आपको इस स्थान से जुड़ी एक एेसी बात बताने जा रहें हैं, जम्मू-कश्मीर में प्रचलित है।

कटरा के करीब हन्साली ग्राम में माता के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनके यहां कोई संतान न थी। वे इस कारण बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया। मां वैष्णो कन्या के रूप में उन्हीं के बीच आकर बैठ गई। अन्य कन्याएं तो चली गईं किंतु माता वैष्णो नहीं गईं।

वह श्रीधर से बोलीं- "सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।" 

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श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। लौटते समय गोरखनाथ व भैरवनाथ जी को भी उनके चेलों सहित न्यौता दे दिया। सभी अतिथि हैरान थे कि आखिर कौन-सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है?

श्रीधर की कुटिया में बहुत-से लोग बैठ गए। दिव्य कन्या ने एक विचित्र पात्र से भोजन परोसना आरंभ किया। जब कन्या भैरवनाथ के पास पहुंची तो वह बोले, "मुझे तो मांस व मदिरा चाहिए।"

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"ब्राह्मण के भंडारे में यह सब नहीं मिलता" कन्या ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया। 

भैरवनाथ ने जिद पकड़ ली किंतु माता उसकी चाल भांप गई। वह पवन का रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर चली गईं। भैरव ने उनका पीछा किया। माता के साथ उनका वीर लंगूर भी था। रास्ते में एक गुफा में मां शक्ति ने नौ माह तक तप किया। भैरव भी उनकी खोज में वहां आ पहुंचा। तब एक साधु ने उससे कहा, "जिसे तू साधारण नारी समझता है, वह तो महाशक्ति हैं।’

भैरव ने साधु की बात अनसुनी कर दी। माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। वह गुफा आज भी गर्भ जून के नाम से जानी जाती है। देवी ने भैरव को लौटने की चेतावनी भी दी किंतु वह नहीं माना। 

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जब माता ने आगे की ओर प्रस्थान किया, तो भैरव नाथ ने उनका रास्ता रोक कर युद्ध के लिए ललकारा तब वीर लंगूर ने भैरव को रोकने के लिए बढ़ा तो वो निढाल हो गया। उसी समय माता वैष्णो ने चंडी का रूप धारण किया और भैरव का वध कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जो ऊपर की घाटी में जा गिरा जिसका नाम भैरों घाटी पड़ा। 

भैरों ने माता के आगे अपने पापों की क्षमा मांगी तब माता ने उसे वरदान दिया कि जो मेरे दर्शनों के पश्चात तुम्हारे दर्शन करेगा, तभी उसकी यात्रा सफल होगी। आज भी प्रति वर्ष लाखों श्रद्धालु माता वैष्णो के दर्शन करने आते हैं और अंत में भैरों के भी दर्शनों को जाते हैं ताकि उनकी यात्रा सफल हो सके। गुफा में माता आज भी पिंडी के रूप में विराजमान हैं। 

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