Edited By Jyoti,Updated: 13 Mar, 2021 12:21 PM
ब्रह्मा जी ने एक बार मनुष्य को अपने पास बुलाकर पूछा, ‘‘तुम क्या चाहते हो?’’
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ब्रह्मा जी ने एक बार मनुष्य को अपने पास बुलाकर पूछा, ‘‘तुम क्या चाहते हो?’’
मनुष्य ने कहा, ‘‘मैं उन्नति करना चाहता हूं, सुख-शांति चाहता हूं और चाहता हूं कि सब लोग मेरी प्रशंसा करें।’’
ब्रह्मा जी ने मनुष्य के सामने दो थैले धर दिए। वे बोले, ‘‘इन थैलों को ले लो। इनमें से एक थैले में तुम्हारे पड़ोसी की बुराइयां भरी हैं। उसे पीठ पर लाद लो। उसे सदा बंद रखना। न तुम देखना न दूसरे को दिखाना। दूसरे थैले में तुम्हारे दोष भरे हैं। उसे सामने लटका लो और बार-बार खोलकर देखा करो। अपने दोषों पर सदा दृष्टि रखो।’’
मनुष्य ने दोनों थैले उठा लिए। लेकिन उससे एक भूल हो गई। उसने अपनी बुराइयों का थैला पीठ पर लाद लिया और उसका मुंह कस कर बंद कर दिया। अपने पड़ोसी की बुराइयों से भरा थैला उसने सामने लटका लिया।
उसका मुंह खोलकर वह उसे देखता रहता और दूसरों को भी दिखाता रहता। इससे उसने जो वरदान मांगे थे, वे भी उलटे हो गए। वह अवनति करने लगा। उसे दुख और अशांति मिलने लगी। सब लोग उसे बुरा बताने लगे।