रावण क्यों लेकर आना चाहता था भगवान शिव को अपने घर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Dec, 2018 03:26 PM

religious story in hindi

त्रेता युग में रावण ने कैलाश पर्वत पर शिवजी की तपस्या की थी। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की और उसने अपना एक-एक सिर काट कर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू कर दिया।

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त्रेता युग में रावण ने कैलाश पर्वत पर शिवजी की तपस्या की थी। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की और उसने अपना एक-एक सिर काट कर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू कर दिया। दसवां और अंतिम सिर काट कर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया तो शिवजी ने प्रसन्न होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुन: स्थापित कर शिव जी ने रावण से वर मांगने को कहा।
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रावण ने कहा कि मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए।
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इससे पहले शिवजी ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह रावण को देते हुए कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। रावण लंका की ओर चला। रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र (बैजनाथ क्षेत्र) में पहुंचा तो उसे लघुशंका लगी। यहां उसे बैजु ग्वाला दिखाई दिया। रावण ने बैजु ग्वाले को शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की मायावी शक्ति के चलते बैजु उन दोनों शिवलिगों का वजन अधिक देर तक उठा नहीं सका। उसने उन्हें धरती पर रख दिया और स्वयं पशु चराने लगा। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। रावण ने ये दोनों शिवलिंग मंजूषा में रखे थे। मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह चंद्र माल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से जाना गया।
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मंदिर के प्रांगण में छोटे मंदिर और नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते हैं। रावण खाली हाथ लंका लौट गया लेकिन बैजनाथ में शिवलिंग की अमूल्य धरोहर छोड़ गया।
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