कुछ इस तरह से तोड़ा भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों का अभिमान

Edited By Lata,Updated: 26 Feb, 2019 11:39 AM

religious story of lord krishna

ये बात तो सब जानते हैं कि भगवान कृष्ण का विवाह राधा रानी से नहीं बल्कि सत्यभामा के साथ हुआ था। भगवान कृष्ण की सोलह हजार एक सो रानियां और 8 पटरानियां भी थी

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ये बात तो सब जानते हैं कि भगवान कृष्ण का विवाह राधा रानी से नहीं बल्कि सत्यभामा के साथ हुआ था। भगवान कृष्ण की सोलह हजार एक सो रानियां और 8 पटरानियां भी थी, जिनमें से देवी सत्यभामा एक थी। सत्यभामा सब रानियों में से बहुत सुंदर थी और उन्हें अपने रूप पर बहुत गर्व भी था। लेकिन एक समय पर भगवान कृष्ण ने उनका ये अभिमान भी तोड़ा था। तो आइए जानते हैं इस रोचक कथा के बारे में कि कैसे भगवान ने उनका अभिमान तोड़ा। 
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एक बार भगवान द्वारका में अपनी रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे और उनके  निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे। उस समय सब बैठकर बातें कर रहे थे और बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं और क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?

द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है। तभी गरूड़ ने भी भगवान से पूछा कि क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है? 

दोनों की बात पूरी होने पर सुदर्शन चक्र ने भी पूछा कि मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है, क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?
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भगवान उन सब की बातें सुनकर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे और वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट करने का समय आ गया है। ऐसा सोचकर उन्होंने गरूड़ से कहा कि तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया। मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे।

भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए। उधर गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।
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हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। जैसे ही महल में गरूड़ पहुंचे तो उन्होंने देखा कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया। तभी श्रीराम के रूप में बैठे कृष्ण ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?

हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें।
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यह जानकर भगवान मन ही मन मुस्कुराने लगे। हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए प्रश्न किया कि आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है?

अब रानी सत्यभामा का अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरूड़ जी तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। भगवान ने अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त द्वारा ही दूर किया उन्होंने।
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