महाभारत : इस मोड़ पर आकर क्यों बलराम जी ने नहीं दिया भगवान कृष्ण का साथ

Edited By Lata,Updated: 30 Mar, 2019 01:57 PM

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महाभारत का युद्ध एक इतिहासिक युद्ध था और इसमें कई तरह के लोग शामिल हुए थे। सबसे बड़ी बात तो ये है कि भगवान कृष्ण खुद इस युद्ध में अर्जुन के सारथी बने थे। कहते हैं कि कान्हा के भाई बलराम शेषनाग का अवतार है

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महाभारत का युद्ध एक इतिहासिक युद्ध था और इसमें कई तरह के लोग शामिल हुए थे। सबसे बड़ी बात तो ये है कि भगवान कृष्ण खुद इस युद्ध में अर्जुन के सारथी बने थे। कहते हैं कि कान्हा के भाई बलराम शेषनाग का अवतार है और उन्होंने कृष्ण का साथ हर एक मोड़ पर दिया था, फिर वो चाहे कोई भी लड़ाई हो। लेकिन क्या किसी को ये पता है कि महाभारत युद्ध के समय बलराम जी उस युद्ध में शामिल नहीं हुए थे। इसकी पीछे भी एक कथा वर्णित है तो आइए जानते हैं इस कथा के बारे में-
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बलराम जी ने भगवान को बहुत बार समझाया कि हमें युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए। क्योंकि दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही हमारे मित्र हैं। तो ऐसे में दोनों का पक्ष न लेना सही नहीं होगा। लेकिन भगवान तो पहले से ही सब जानते ही थे, उनके मन में कोई दुविधा नहीं थी। उन्होंने इस समस्या का हल निकाल लिया था, जब दुर्योधन को भगवान और उनकी सेना में से किसी एक को चुनना था, तो दुर्योधन ने कृष्ण सेना का चुनाव किया था।
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महाभारत में यह वर्णित है कि जिस समय युद्ध की तैयारियां हो रही थीं और उधर एक दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम, पांडवों की छावनी में अचानक पहुंचे। दाऊ भैया को आता देख श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर आदि बड़े प्रसन्न हुए और सभी ने उनका आदर किया और उसके बाद बलराम जी धर्मराज जी के पास बैठ गए। फिर उन्होंने बड़े व्यथित मन से कहा कि कितनी बार मैंने कृष्ण को कहा कि हमारे लिए तो पांडव और कौरव दोनों ही एक समान हैं। इसमें हमें बीच में पड़ने की आवश्यकता नहीं, पर कृष्ण ने मेरी एक न मानी। कृष्ण को अर्जुन के प्रति स्नेह इतना ज्यादा है कि वे कौरवों के विपक्ष में हैं। अब जिस तरफ कृष्ण हों, उसके विपक्ष में कैसे जाऊं?
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भीम और दुर्योधन दोनों ने ही मुझसे गदा सीखी है और दोनों ही मेरे शिष्य हैं। ऐसे में दोनों पर मेरा एक जैसा स्नेह है। इन दोनों कुरुवंशियों को आपस में लड़ते देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता अतः मैं इस युद्ध में शामिल न होकर तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं।
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