Kunali Tv- क्या आप दे सकते हैं इस ऋषि के सवाल का जवाब

Edited By Jyoti,Updated: 21 Jun, 2018 10:31 AM

religious story of saint kakshivaan

पौराणिक कथा के अनुसार एक आश्रम में विद्वान ऋषि कक्षीवान रहते थे। उन्हें बहुत    प्रकार के शास्त्रों और वेदों का ज्ञान था। एक बार वे उन्हीं की तरह वेदों और शास्त्रों मे  निपु्ण ऋषि प्रियमेध से मिलने गए, तथा उनके आश्रम में पहुंचते ही ऋषि प्रियमेध ने  ...

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पौराणिक कथा के अनुसार एक आश्रम में विद्वान ऋषि कक्षीवान रहते थे। उन्हें बहुत प्रकार के शास्त्रों और वेदों का ज्ञान था। एक बार वे उन्हीं की तरह वेदों और शास्त्रों मे निपु्ण ऋषि प्रियमेध से मिलने गए, तथा उनके आश्रम में पहुंचते ही ऋषि प्रियमेध ने उनका खूब आदर सत्कार किया। ऋषि कक्षीवान जब भी ऋषि प्रियमेध से मिलते तो दोनों के बीच बहुत लंबी बात-चीत होती। उस दिन भी ऋषि कक्षीवान ने प्रियमेध से एक पहेली पूछी की ऐसी कौन सी चीज़ है, जिसे यदि जलाएं तो उस से थोड़ी सी भी रौशनी न हो?

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प्रियमेध काफ़ी सोच विचार करने लगे परंतु वे इस पहेली का उत्तर नहीं दे पाए, वे किसी भी चीज़ के बारे में विचार करते तो उन्हें लगता की वह थोड़ी सी ही सही परंतु रौशनी तो देता है। पहेली का उत्तर ढूंढ़ते-ढूंढ़ते उनकी सारी जिंदगी बीत गई। जब प्रियमेध ऋषि का अंतिम समय नजदीक आया तो उन्होंने कक्षीवान ऋषि को संदेश भेजा की मैं अपनी पूरी जिंगदी मे आपके प्रश्न का उत्तर देने मे कामयाब नही हो पाया। परंतु मुझे पूरा विश्वास है की भविष्य में मेरे वंश में एक ऐसा विद्वान ज़रूर जन्म लेगा जो आपके इस प्रश्न का उत्तर दे पाएगा। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र ने ऋषि कक्षीवान के प्रश्न का उत्तर देने का जिम्मा लिया परंतु वह भी इस प्रश्न का उत्तर न ढूंढ़ पाया और एक दिन उसकी भी मृत्यु हो गई। इस के बाद कक्षीवान के उस प्रश्न के उत्तर को ढूढ़ने में प्रियमेध की कई पीढ़िया गुजरती गई।

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इस तरह ऋषि प्रियमेध की आठ पीढ़िया कक्षीवान के प्रश्न का उत्तर न ढूंढ़ सकी तथा उत्तर ढूढ़ते-ढूढ़ते स्वर्ग को प्राप्त हो गई। कक्षीवान अपने पहेली का हल पाने के लिए जिंदा रहे। कक्षीवान के पास नेवले के चमड़े से बनी एक थैली थी। जिसमें कुछ चावल भरे थे। हर वर्ष वे उसमें से एक-एक दाना निकालकर फेंक देते थे। जब तक थैली के सारे चावल ख़त्म न हो जाए उन्हें तब तक का जीवन प्राप्त था। प्रियमेध के नौवी पीढ़ी में साकमश्व नाम के एक बालक का जन्म हुआ। वह बचपन से ही बहुत विद्वान था, तथा अपने मित्रों के साथ हर काम में वह आगे था। साकमश्व जब बड़ा हुआ तो उसे एक बात चुभने लगी कि एक पहेली का उत्तर उसकी पूरी 8 पीढ़ियां नहीं दे पाई और स्वर्गवासी हो गई। परंतु अब तक उस प्रश्न को पूछने वाला जिंदा है।

साकमश्व ने निश्चय किया कि वह इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ के ही रहेगा। एक दिन उसे प्रश्न का उत्तर सोचते-सोचते सामवेद का एक श्लोक सुझा तथा उसने सामवेद के उस श्लोक को एक निर्धारित सुर में गाना शुरू किया, इसके साथ ही उसे प्रश्न का उत्तर मिल गया।

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प्रश्न का उत्तर मिलनेेे पर वह तुरंत कक्षीवान के आश्रम की ओर भागा तथा कक्षीवान उसे देखते ही जान गए की उन्हें आज उनके प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा। उन्होंने अपने एक शिष्य को बुला कर उनकी चावलों के दानों से भरी थैली को फैंकने के लिए कह दिया।

साकमश्व ऋषि कक्षीवान के करीब पहुंचकर उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए बोला की जो मनुष्य केवल स्रोत गाता है, साम नही वह गायन उस अग्नि के समान कहलाता है।


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जिससे प्रकाश पैदा नही होता, लेकिन जो ऋग्वेद के ऋचा के बाद सामवेद का साम भी गाता हो उसका गायन उस अग्नि जैसा है। जिससे रौशनी भी पैदा होती है। साकमश्व के उत्तर को सुनकर कक्षीवान संतुष्ट हुए और उसे अपना आशीर्वाद दिया इस प्रकार साकमश्व ने अपने पूर्वजों पर लगा कलंक भी मिटा दिया।

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