Edited By Jyoti,Updated: 20 May, 2018 11:55 AM
इस तुलना को सुनकर सत्यभामा क्रोधित हो गईं। तुलना की भी तो किससे? श्री कृष्ण ने किसी तरह सत्यभामा को मना लिया और उनका गुस्सा शांत किया। कुछ दिन पश्चात श्री कृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया।
ये नहीं देखा तो क्या देखा
एक बार सत्यभामा ने श्री कृष्ण से पूछा, ‘‘मैं आपको कैसी लगती हूं?’’
आपका राशिफल
श्री कृष्ण बोले, ‘‘नमक जैसी लगती हो।’’
क्या आपके बच्चे नहीं सुनते आपकी बात!
इस तुलना को सुनकर सत्यभामा क्रोधित हो गईं। तुलना की भी तो किससे? श्री कृष्ण ने किसी तरह सत्यभामा को मना लिया और उनका गुस्सा शांत किया। कुछ दिन पश्चात श्री कृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया। सर्वप्रथम सत्यभामा से भोजन प्रारंभ करने का आग्रह किया। सत्यभामा ने पहला कोर मुंह में डाला मगर यह क्या? सब्जी में तो नमक ही नहीं था।
ऐसे होंठ वाले होतें हैं CHARACTERLESS
कोर को मुंह से निकाल दिया। फिर दूसरा कोर किसी और व्यंजन का मुंह में डाला। उसे चबाते-चबाते भी बुरा-सा मुंह बनाया। इस बार पानी की सहायता से किसी तरह कोर गले से नीचे उतारा। अब तीसरा कोर कचरी का मुंह में डाला तो फिर थूक दिया। अब तक सत्यभामा का पारा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। जोर से चीखीं कि किसने बनाई है यह रसोई? सत्यभामा की आवाज़ सुन कर श्री कृष्ण दौड़ते हुए सत्यभामा के पास आए और पूछा, ‘‘क्या हुआ देवी, इतनी क्रोधित क्यों हो?’’
सत्यभामा ने कहा, ‘‘इस तरह बिना नमक की कोई रसोई बनती है? एक कोर नहीं खाया गया।’’
श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से पूछा, ‘‘नमक नहीं तो क्या हुआ, बिना नमक के ही खा लेती। उस दिन क्यों गुस्सा हो गई थी जब मैंने तुम्हें कहा कि तुम मुझे नमक जितनी प्रिय हो?’’
सत्यभामा हैरत से श्री कृष्ण की ओर देखने लगीं। कृष्ण बोलते गए, ‘‘स्त्री जल की तरह होती है। जिसके साथ मिलती है उसका ही गुण अपना लेती है। स्त्री नमक की तरह होती है जो अपना अस्तित्व मिटाकर भी अपने प्रेम-प्यार तथा आदर-सत्कार से अच्छा परिवार बना देती है। स्त्री अपना सर्वस्व खोकर भी किसी की जान-पहचान की मोहताज नहीं होती है।’’
अब सत्यभामा को श्री कृष्ण की बात का मर्म समझ में आ गया।