मुंह से शब्द निकालने से पहले इन बातों को कर लें याद

Edited By Lata,Updated: 02 Feb, 2019 05:35 PM

remember these points before uttering

व्यक्ति के जीवन में बोलचाल का तरीका ही उसे अपनी पहचान बनाने में सहायता करता है। समाज में काफी हद तक हम अपनी पहचान अपने बोलने के तरीके से बना सकते हैं।

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व्यक्ति के जीवन में बोलचाल का तरीका ही उसे अपनी पहचान बनाने में सहायता करता है। समाज में काफी हद तक हम अपनी पहचान अपने बोलने के तरीके से बना सकते हैं। फिर वो चाहे स्त्री हो या पुरुष सभी को बोलते समय कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए। आज हम आपको बताएंगे कि महाभारत के एक श्लोक के बारे में, जिसमें वाणी के संबंध में कुछ खास बातें बताई गई हैं।
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श्लोक-
व्याहृतं व्याहृताच्छ्रेय आहू: सत्यं वदेद् व्याहृतं तद् द्वितीयम्।
वदेद् व्याहृतं तत् तृतीयं प्रियं धर्मं वदेद् व्याहृतं तच्चतुर्थम्।।

अर्थात-
इस श्लोक में बताया गया है कि वाणी की चार श्रेष्ठ विशेषताएं हैं। इन चार विशेषताओं में एक ये है कि हमें हमेशा सच बोलना चाहिए। झूठ बोलना भी एक पाप है। मान्यता है कि महाभारत में युधिष्ठिर हमेशा सच बोलते थे, इसी कारण उनका रथ जमीन से चार अंगुल यानि लगभग चार इंच ऊपर ही चलता था। जब युद्ध में द्रोणाचार्य को मारने के लिए पांडवों ने षड़यंत्र रचा था। षड़यंत्र के अनुसार भीम ने अश्वथामा नाम के हाथी को मार दिया और भीम जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि मैंने अश्वथामा को मार दिया।
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जब ये बात द्रोणाचार्य ने सुनी तो उन्हें लगा कि उनके पुत्र अश्वथामा को भीम ने मार दिया है। द्रोणाचार्य जानते थे कि युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलते हैं, इसीलिए इस बात की सच्चाई जानने के लिए वे युधिष्ठिर के पास गए। युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य से कहा कि अश्वथामा मारा गया, लेकिन वह हाथी था।

जब युधिष्ठिर बोल रहे थे ‘लेकिन वह हाथी था’ उसी समय श्रीकृष्ण ने शंख बजा दिया। जिससे द्रोणाचार्य ने सिर्फ यही सुना कि अश्वथामा मारा गया। यह सुनते द्रोणाचार्य रथ से उतर गए और उसी समय धृष्टधुम्य ने उनका वध कर दिया। इस प्रसंग में युधिष्ठिर में झूठ नहीं बोला, लेकिन झूठ में साथ दिया था। इसी कारण उनका रथ जमीन पर आ गया। एक झूठ के कारण युधिष्ठिर की जीवनभर की सच बोलने की तपस्या टूट गई। इसलिए व्यक्ति को कभी भी झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए।
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दूसरी विशेषता यह है कि फालतू बोलने की बजाए चुप रहना ही बेहतर होता है। बेकार की बातें सुनना कोई पसंद नहीं करता है और जो लोग बकवास करते हैं, उन्हें भी लोग पसंद नहीं करते हैं। इसीलिए फालतू बातें नहीं करना चाहिए और जितना जरूरी हो, उतना ही बोलना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति को किसी की बात समझ में न आए तो भी फालतू की चर्चा में पड़ने की बजाए चुपी साध लेना ही बेहतर होता है। तीसरी विशेषता यह है कि हमें हमेशा मीठा बोलना चाहिए।

मीठे बोल यानि ऐसी बोली जिससे दूसरों को ठेस न पहुंचे। वाणी में कठोरता नहीं होनी चाहिए। ऐसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए, जिनसे दूसरों को सुख मिले। कभी भी चुभने वाले शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से लोग आपकी तरफ जल्दी आकर्षित होते हैं। चौथी विशेषता यह है कि हमें धर्म के अनुसार जो सही हो वैसी बातें करनी चाहिए। जो लोग धर्म का ज्ञान दूसरों को देते हैं, वे घर-परिवार और समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करते हैं।
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