भारतीय संगीत को Represent करता है ये वेद

Edited By Jyoti,Updated: 05 Jun, 2018 12:08 PM

representing indian music these vedas

सामवेद भारत के प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में से एक है। ''साम'' शब्द का अर्थ है ''गान''।सामवेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति के समय गाया जाता था। आकार की दृष्टि सामवेद चारों वेदों में से सबसे छोटा है और इसके 1875 मंत्रों में से 99 को छोड़ कर...

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सामवेद भारत के प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में से एक है। 'साम' शब्द का अर्थ है 'गान'।सामवेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति के समय गाया जाता था। आकार की दृष्टि सामवेद चारों वेदों में से सबसे छोटा है और इसके 1875 मंत्रों में से 99 को छोड़ कर सभी ऋगवेद के हैं। केवल 17 मंत्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाए जाते हैं। फिर भी इसकी प्रतिष्ठा बहुत ज्यादा है।
सामवेद की तीन महत्त्वपूर्ण शाखाएं हैं-
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*कौथुमीय
*जैमिनीय एवं
*राणायनीय।
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देवता विषयक विवेचन की दृष्ठि से सामवेद का प्रमुख देवता ‘सविता‘ या ‘सूर्य‘ है, इसमें मुख्यतः सूर्य की स्तुति के मंत्र हैं किंतु इंद्र सोम का भी इसमें पर्याप्त वर्णन है। भारतीय संगीत के इतिहास के क्षेत्र में सामवेद का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इसे भारतीय संगीत का मूल कहा जा सकता है। सामवेद का प्रथम द्रष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनि को माना जाता है।
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सामवेद से तात्पर्य है कि वह ग्रंथ जिसके मंत्र गाएे जा सकते हैं और जो संगीतमय हों।

यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय ये मंत्र गाएे जाते हैं।

सामवेद में मूल रूप से 99 मंत्र हैं और शेष ऋग्वेद से लिए गये हैं।

इसमें यज्ञानुष्ठान के उद्गातृवर्ग के उपयोगी मन्त्रों का संकलन है।

इसका नाम सामवेद इसलिए पड़ा है कि, इसमें गायन-पद्धति के निश्चित मंत्र ही हैं।

इसके अधिकांश मंत्र ऋग्वेद में उपलब्ध होते हैं, कुछ मंत्र स्वतंत्र भी हैं।

सामवेद में ऋग्वेद की कुछ ॠचाएं आकलित है।

वेद के उद्गाता, गायन करने वाले जो कि सामग (साम गान करने वाले) कहलाते थे। उन्होंने वेदगान में केवल तीन स्वरों के प्रयोग का उल्लेख किया है जो उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित कहलाते हैं।
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सामगान व्यावहारिक संगीत था। उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं हैं। वैदिक काल में बहुविध वाद्य यंत्रों का उल्लेख मिलता है जिनमें से तंतु वाद्यों में कन्नड़ वीणा, कर्करी और वीणा, घन वाद्य यंत्र के अंतर्गत दुंदुभि, आडंबर वनस्पति तथा सुषिर यंत्र के अंतर्गतः तुरभ, नादी तथा बंकुरा आदि यंत्र विशेष उल्लेखनीय हैं।

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