Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Sep, 2021 12:25 PM
महाराष्ट्र में सम्भाजी नगर जिले के एक गांव में चांद भाई रहते थे जिन्हें सब पाटिल कहते थे। एक दिन उनका घोड़ा खो गया। वह उसे ढूंढ रहे थे। इतने में उन्होंने देखा कि फकीर की वेशभूषा में एक
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Story of shirdi sai baba: महाराष्ट्र में सम्भाजी नगर जिले के एक गांव में चांद भाई रहते थे जिन्हें सब पाटिल कहते थे। एक दिन उनका घोड़ा खो गया। वह उसे ढूंढ रहे थे। इतने में उन्होंने देखा कि फकीर की वेशभूषा में एक 16 वर्षीय तरुण खड़ा है। चांद भाई को देखते ही उसने पुकारा, ‘‘क्यों चांद पाटिल, क्या आपका घोड़ा गुम हो गया है?’’
चांद पाटिल ने उत्तर दिया, ‘‘हां, उसे ही तो ढूंढ रहा हूं।’’ लेकिन वह हत्प्रभ थे कि यह युवक मेरा नाम कैसे जानता है? इसने कैसे जाना कि मेरा घोड़ा गुम हो गया है। उस युवक ने उनसे कहा कि उस पहाड़ी के पीछे एक बाड़ा है, वहीं आपका घोड़ा घास चर रहा है।
चांद पाटिल वहां पहुंचे तो देखा घोड़ा उसी बाड़े में चर रहा था। वह अपने घोड़े के साथ घर लौट आए पर फकीर के व्यक्तित्व ने उन्हें गहरा प्रभावित किया था।
इसके बाद उस फकीर की चर्चा पूरे इलाके में फैल गई। संयोग की बात है कि चांद भाई के घर में किसी का विवाह था। बारात सम्भाजी नगर से शिरडी जाने वाली थी। बारात के साथ वह तरुण फकीर भी चल पड़ा। शिरडी में खंडोबा देव का मंदिर आज भी है। उस मंदिर के पुजारी महालसापति थे। उन्होंने उस 16 वर्षीय फकीर को देखते ही, उसका स्वागत किया, ‘‘आओ साईं!’’
वह तरुण तब से वहीं रहने लगा। किसी को पता नहीं था कि उनके माता-पिता कौन हैं? उनका जन्म कब और कहां हुआ है? वह हिंदू हैं या मुसलमान? लेकिन वह मस्जिद में भी रहते थे और मंदिर में भी।
शिरडी वासी समझ चुके थे कि यह फकीर सही मायने में हिंदू-मुस्लिम एकता का पक्षधर है। कोई पूजा करे या नमाज पढ़े, उनकी नजर में कोई फर्क नहीं पड़ता था। ईश्वर, अल्लाह अलग-अलग नहीं हैं, ऐसा उनका मानना था।
सबका मालिक एक है, यह उनकी सोच थी। यही चमत्कारी तरुण फकीर आगे चल कर शिरडी के साईं बाबा कहलाए, जिनके प्रति पूरे देश के लोगों में अटूट श्रद्धा है।