Edited By Lata,Updated: 28 May, 2019 05:47 PM
आज के इस दौर में हर इंसान अपना लक्ष्य पाना चाहता है। हर कोई चाहता है कि वह अपनी ज़िंदगी में जल्द से जल्द आगे
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आज के इस दौर में हर इंसान अपना लक्ष्य पाना चाहता है। हर कोई चाहता है कि वह अपनी ज़िंदगी में जल्द से जल्द आगे बढ़े और अपनी मंजिल को पा सके। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि व्यक्ति की तरक्की की राह में तमाम मुश्किलें आती हैं। उसके लिए संत कबीर ने अपनी दिव्य वाणी से लोगों के जीवन से अंधकार को दूर करने के लिए बहुत सी बातों का जिक्र किया है। तो चलिए आगे जानते हैं कबीर की वाणी से कुछ बातों के बारे में।
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।
अर्थ: संत कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु और गोविंद जब एक साथ खड़े हों तो उन दोनों में से आपको सबसे पहले किसे प्रणाम करना चाहिए। कबीरदास जी के अनुसार सबसे पहले हमें अपने गुरु को प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही गोविंद यानि भगवान के पास जाने का मार्ग बताया है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
संत कबीर कहते हैं कि बड़ी-बड़ी पोथी पढ़ने का कोई लाभ नहीं है, जब तक कि आपमें विनम्रता, प्रेम नहीं है और आप लोगों से प्रेम से बात नहीं करते हैं। कबीर कहते हैं जिसे प्रेम के ढाई अक्षर का ज्ञान प्राप्त हो गया वहीं इस संसार का असली विद्वान माना जाता है।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
कर्मकांड के बारे में कबीरदास जी का कहना है कि लंबे समय तक हाथ में मोती का माला फेरने से कुछ लाभ नहीं होने वाला है। इससे आपके मन के भाव शांत नहीं होंगे। चित्त को शांत रखने और मन को काबू रखने पर ही मन की शीतलता प्राप्त होगी। कबीर दास जी लोगों को अपने मन को मोती के माला के समान सुंदर बनाने की बात करते हैं।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
कबीरदास जी हमेशा जात-पात का विरोध किया। उनका कहना था कि आप किसी से ज्ञान प्राप्त कर रहे हों तो उसकी जाति के बारे में ध्यान न दें, क्योंकि उसका कोई महत्व नहीं होता है। बिल्कुल वैसे ही, जैसे तलवार का महत्व उसे ढकने वाले म्यान से ज्यादा होता है।