जब संत एकनाथ ने बचाई बच्चे की जान

Edited By Lata,Updated: 15 Jan, 2020 09:51 AM

sant eknath

महाराष्ट्र के संत एकनाथ अत्यंत करुणाशील थे। एक दिन संध्या गंगा स्नान और ईश्वर प्रार्थना आदि के लिए

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महाराष्ट्र के संत एकनाथ अत्यंत करुणाशील थे। एक दिन संध्या गंगा स्नान और ईश्वर प्रार्थना आदि के लिए आसन आदि लेकर वह कुटिया से निकले। गर्मी का मौसम था, सूर्य की तपती किरणों से धरती झुलस रही थी, पर संत एकनाथ को मौसम का ख्याल ही नहीं था। भगवान का नाम लेते हुए वह नंगे पैर नदी की ओर बढ़ चले। अचानक उनकी दृष्टि एक करुण दृश्य पर केंद्रित हो गई। उन्होंने देखा कि एक नारी तेजी से पानी भरने जा रही थी।
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उस स्त्री के पैर गर्म मिट्टी से जल रहे थे, इसलिए वह तेजी से चल रही थी। इसी में उसका बच्चा उसके पीछे-पीछे आने लगा, लेकिन उसे पता ही नहीं चला। बच्चा कुछ दूर तो मां-मां पुकारता पीछे दौड़ा, किंतु उस तपती धूप में अपने नन्हे पांवों से मां को कैसे पकड़ता? जलती हुई रेत आग बरसा रही थी। कुछ दूर चलकर बच्चा रास्ते में गिर गया और तड़पने लगा। उस बच्चे के मुंह से लार बह रही थी, नाक से मैल। बच्चा न आगे बढ़ सकता था, न पीछे लौट सकता था। आखिरकार दर्द से वह बच्चा चिल्ला उठा।
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यह देख संत एकनाथ का हृदय रो उठा। उन्होंने धूल-मिट्टी से लिपटे उस बच्चे को उठा लिया और उसे सीने से चिपका लिया। अपने अंगोछे से बच्चे की नाक, मुंह और चेहरा साफ किया और कपड़े से बच्चे को ढककर उसे उसकी बस्ती में ले गए तथा उसकी जान बच गई। बच्चे का पिता यह दृश्य देखकर दौड़ता हुआ घर से बाहर आया। इतने में पानी भरकर बच्चे की मां भी वापस आ पहुंची। बच्चे के माता-पिता संत एकनाथ के रूप में सच्ची मूॢतमती मानवता को देखकर गद्गद् हो उठे। संत एकनाथ ने बच्चे के बारे में भविष्य में अधिक सावधान रहने के लिए माता-पिता को सचेत किया और प्रभु नाम स्मरण करते हुए गंगा स्नान के लिए चल पड़े।  
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