ज्ञान के बीज को प्रफुल्लित करने के लिए सत्संग आवश्यक

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Nov, 2017 05:56 PM

satsang is necessary for the enlightenment of knowledge

आत्मज्ञान की प्राप्ति तो गुरु की कृपा से सहज में हो सकती है लेकिन इसे संभालना बहुत कठिन है। जैसे हम कहीं से कोई फल का पौधा, कोई फूलों का पौधा ले आते हैं और अपने घर के आंगन में लगा देते हैं,

आत्मज्ञान की प्राप्ति तो गुरु की कृपा से सहज में हो सकती है लेकिन इसे संभालना बहुत कठिन है। जैसे हम कहीं से कोई फल का पौधा, कोई फूलों का पौधा ले आते हैं और अपने घर के आंगन में लगा देते हैं, लेकिन केवल उसे घर के आंगन में लगा देने से ही हमें लाभ नहीं मिल जाता। हम उसकी देख-रेख करते हैं उसे पानी भी देते हैं, खाद भी डालते हैं ताकि वह पौधा बड़ा हो फूल, फल और अच्छी  छाया दे।

 

इसी तरह से ज्ञान का बीज मन में डाला गया, इसे भी प्रफुल्लित करने के लिए सेवा, सुमरन, सत्संग की जरूरत होती है। जिस तरह से दीपक की एक लौ जलाते हैं और हवा में हम उस दीपक को दोनों हथेलियों से ढक लेते हैं ताकि चारों तरफ से जो हवा चल रही है वह उस लौ को बुझा न दे, इस तरह इस ज्ञान के दीपक को जब माया की हवा बुझाने की कोशिश करती है तो इस ज्ञान की देखरेख करने के लिए चिंतन करना ऐसे ही है जैसे अपने हाथों से ढक कर उसे बुझने से बचा लिया हो।

 

हमें धन मिलता है तो धन की सुरक्षा भी आवश्यक होती है। धन के जरिए हमारे कार्य पूरे हो जाते हैं। देखने वाला कहता है कि उसके पास तो इतनी प्रापर्टी है, इतनी जायदाद है, धन है और इस धन के कारण उसके सारे परिवार की सुरक्षा हो गई है। इसमें भी कोई शक नहीं कि वह धन भी सारे परिवार की देखरेख  कर रहा है लेकिन उस धन को पहले परिवार वालों ने संभाला हुआ था तभी तो वह उसकी देखरेख कर रहा है। उसे फैंका नहीं और हाथ से जाने नहीं दिया।

 

यदि कोई नदी में डूब रहा इंसान नदी में बह रहे लकड़ी के टुकड़े को थाम लेता है तो देखने वाला कहता है कि देखो जी उस टुकड़े ने इसे संभाल लिया है वरना तो इसको डूब जाना था, लेकिन टुकड़े ने उसे तभी संभाला है जब वह खुद टुकड़े को थामे हुए है। इसी तरह यह निराकार परमात्मा रूपी ज्ञान, जो विरलों को प्राप्त होता है जिसका कोई मोल नहीं, जो जन्मों-जन्मों की भटकन के बाद प्राप्त होता है, ऐसा नाम रूपी हीरा जब इस झोली में पड़ जाता है तो इसकी देखभाल कर लेता है। वह वास्तव में आनंदित रहता है, हमेशा सुखी रहता है उसके नजदीक कोई तृष्णा नहीं आती अभिमान, दुख या कोई बुरी भावना उसके मन में प्रवेश नहीं करती।

 

इसकी सुरक्षा का जरिया भी बताया है, वह जरिया है साधु संगत करना, सेवा करना और सुमिरन करना। लेकिन ये तीनों कार्य नियम-भावना से जब करते हैं तो इस हीरे की सुरक्षा हो जाती है यह कभी हाथों से नहीं जाता।

 

इसमें कोई शक नहीं कि इस निरंकार, दातार, प्रभु परमात्मा का ज्ञान सद्गुरु से प्राप्त हो जाता है लेकिन फिर भी इसको हम आंखों से ओझल कर देते हैं। इस तरह का समय कई बार जीवन में आता है। हर एक गुरुमुख महापुरुष का नाता इस निरंकार प्रभु हरि के साथ जुड़ा रहेगा, तो भक्त हमेशा गुणवान होते रहेंगे। इस प्रकार सुख दातार प्रदान करता रहेगा।

 

इस ज्ञान की सुरक्षा या देखभाल तभी है जब हम इस ज्ञान रूपी बीज को धरती में बोते हैं तो बाद में उसको खाद, पानी इत्यादि प्रदान करते हैं तभी वह बड़ा वृक्ष बनता है। इसमें फल लगते हैं, हमें छाया देने लग जाता है। वह इतना मजबूत हो जाता है कि बड़े से बड़े हाथी को भी उसके साथ बांध दें तो वह टस से मस नहीं होता।

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