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क्या है आदर्श गृहस्थ जीवन, शिव-पार्वती से जानें इसका सटीक उदाहरण
Edited By Jyoti,Updated: 24 Jul, 2020 03:54 PM
श्रावण मास में विशेष रूप से भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी देवी पार्वती की पूजा की जाती है। इससे जुड़ी मान्यता है कि इस मास में शिव-पार्वती मिलकर खास रूप से दंपत्य जीवन पर अपनी कृपा बरसाते हैं।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ श्रावण मास में विशेष रूप से भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी देवी पार्वती की पूजा की जाती है। इससे जुड़ी मान्यता है कि इस मास में शिव-पार्वती मिलकर खास रूप से दंपत्य जीवन पर अपनी कृपा बरसाते हैं। तो वहीं कुंवारे लड़के व लड़कियों को भी मनचाहा जीवनसाथी मिलने का आशीर्वाद देते हैं। यही कारण कि इस दौरान हर कोई इनकी आराधना में डूबा दिखाई देता है। परंतु क्या इनकी पूजा कर लेने से उपरोक्त इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। जी नहीं, ऐसा नहीं है केवल पूजा नहीं, बल्कि आवश्यक है पति-पत्नी में भगवान शिव और देवी पार्वती जैसे गुण भी होने चाहिए। कहने का भाव है जिस तरह से उन्होंने अपने दांपत्य जीवन को सुखमय बनाया ठीक उसी तरह आज के समय में भई लोगों को इनसे इन बातों को सीखना चाहिए। धार्मिक शास्त्रों की बात करें तो आदर्श दाम्पत्य जीवन की सबसे सटीक उदाहरण भगवान शंकर और मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं। इसके अनुसार भगवान शिव और देवी पार्वती का जीवन आज के समय में मानव समाज को प्ररेणा देता है। बल्कि कहा जाता है कि दाम्पत्य जीवन हो तो देवों के देव महादेव और देवी पार्वती की तरह। आइए जानते हैं कुछ ऐसी बातें जो भगवान शंकर और देवी पार्वती से संबंधित है मगर उदाहरण है आज के कल की दंपत्ति के लिए- प्रेम- धार्मिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री दक्षा एवं दाक्षणी को कैलाश पर रहने वाले वैरागी शिव से प्रेम हो गया, जिसके बाद उन्होंने अपनी पिता की न मंजूरी के बावज़ूद भगवान शिव से विवाह कर लिया। जिस कारण उनके मन में अपने पुत्री के प्रति प्रेम कम हो गया। इसी के चलते पिता ने एक बार उनके पति यानि देवों के देव महादेव का अपमान किया। अपने पति का अपमान न सह पाई और उन्होंने इससे आहत होकर अपने ही पिता के यज्ञ में कूदकर खुद को भस्म कर लिया। जब भगवान शंकर तक ये बात पहुंची तो उन्होंने क्रोध वश अपने अंशावतार वीरभद्र को भेजकर राजा दक्ष के यहां विध्वंस मचा दिया था। इतना ही नहीं भगवान वीरभद्र ने रादा दक्ष की गर्दन उतारकर शिव के समक्ष रख दी। धीरे-धीरे शिव जी का सारा क्रोध अपार दुख में बदल गया जिसे बाद वे अपनी पत्नी का शव लेकर जगत में घूमने लगे। मान्यता है कि जहां देवी दक्षा के अंग गिरे वहां वर्तमान में शक्तपीठ स्थापित हैं। एक दूसरे के प्रति शिव-पार्वती का ये स्नेह ये बात उनके असीम प्रेम को दर्शाता है। विवाह- धार्मिक शास्त्र इस बात का प्रमाण देते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती दोनों एक दूसरे से असीम प्रेम करते थे परंतु फिर भी उन्होंने कभी गंधर्व विवाह या अन्य किसी प्रकार का विवाह नहीं किया। बल्कि समाज की प्रचलित वैदिक रीति-रिवाज़ों से विवाह संपन्न किया था। बता दें पहली बार देवी सती का भगवान शिव ह्मजी ने विधिवत रूप से विवाह करवाया था। तो वहीं दूसरी बार देवी सती के दूसरे अवतार यानि देवी पार्वती के रूप में विवाह भी सभी की सहमति से विधिवत रूप से ही संपन्न हुआ था। शास्त्र कहते हैं एक आदर्श दांपत्य जीवन में सामाजिक रीति और परिवार की सहमति होना बहुत ज़रूरी होता है तभी जीवन सफल और खुशहाल होता है।
आदर्श गृहस्थ जीवन- धार्मिक तथा सांसारिक दोनों ही दृष्टि से शिव-पार्वती एवं शिव परिवार गृहस्थ जीवन का आदर्श है। इनके जीवन से पति-पत्नी के संबंधों में प्रेम, समर्पण और घनिष्ठता का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत होता है। तो वहीं इनकी संतानें भी आदर्श थी। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान शिव तथा देवी पार्वती ने संपूर्ण पारिवारिक जीवन का और उसके उत्तरदायित्व का निर्वाह किया।
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